मीरा के पद || कक्षा 10 || Summary, Word meanings, Explanation, Question Answers of Meera Ke Pad Class 10 ||

स्पर्श- पाठ 2       कक्षा- 10
Sparsh- Chapter 2   Class 10 

पद

मीराबाई

 
जीवन परिचय:-
 कवयित्री  - मीराबाई  |
जन्म -  1503 (जोधपुर, कुकडी गाँव)
मृत्यु - 1546 
रचनाएँ - मीराबाई ने श्रीकृष्ण के प्रेम में अनेक भावपूर्ण गेय पदों की रचना की है जिसके संकलन विभिन्न नामों से प्रकाशित हुए हैं -राम गोबिंद  ,गीत गोबिंद आदि  |
भाषा शैली -  इनके पदों की भाषा में राजस्थानी,गुजराती तथा ब्रज का मिश्रण पाया जाता है |
उपमा व रूपक आदि अलंकारों का प्रयोग भी बहुत ही स्वाभाविक रूप से किया गया है |
पदों की भाषा भावों की अनुगामिनी है |
इनके पदों में एकरूपता न होते हुए भी स्वाभाविकता,सरसता तथा मधुरता कूट-कूटकर भरी हुई है |
इनकी रचनाओं में श्रृंगार रस के दोनों पक्षों  (संयोग व वियोग) का बड़ा ही मार्मिक वर्णन हुआ है |


पाठ प्रवेश :-
माना जाता है कि अपने पारिवारिक संतापों से मुक्ति पाने के लिए मीराबाई घर-परिवार को छोड़कर वृंदावन में जा बसीं थीं और श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन हो गई थीं |इनकी रचनाओं में इनके आराध्य कहीं निर्गुण निराकार ब्रह्म,कहीं सगुण साकार गोपीवल्लभ श्रीकृष्ण और कहीं निर्मोही परदेशी जोगी के रूप में संकल्पित किए गए हैं |गिरधर गोपाल के अनन्य प्रेम से वह अभिभूत हो उठीं थीं |
पाठ का सार :-
प्रस्तुत पदों में मीराबाई अपने भक्तवत्सल श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम व भक्ति को  व्यक्त करती हैं |दोनों पद  उनके आराध्य श्रीकृष्ण को  ही संबोधित हैं |इन पदों में मीरा अपने आराध्य से मनुहार भी करती हैं ,लाड़ भी लड़ाती हैं तथा अवसर आने पर उलाहना देने से भी नहीं चूकतीं | जहाँ उनकी क्षमताओं का गुणगान करती हैं, स्मरण करती हैं वहीं उन्हें उनके कर्तव्य याद दिलाने में भी देर नहीं लगातीं |
 

पद 

(1)


हरि आप हरो जन री भीर।
द्रोपदी री लाज राखी , आप बढ़ायो चीर।
भगत कारण रूप नरहरि , धरयो आप सरीर।
बूढ़तो गजराज राख्यो , काटी कुञ्जर पीर।
दासी मीराँ लाल गिरधर , हरो म्हारी भीर।।


शब्दार्थ –
हरि श्रीकृष्ण
जन भक्त
भीर पीड़ा , दुःख
लाज सम्मान , इज्ज़त
चीर वस्त्र , साड़ी
नरहरि नरसिंह अवतार
सरीर शरीर
गजराज हाथियों का राजा
लाल गिरधर श्री कृष्ण
म्हारी हमारी

प्रस्तुत पद्य में मीराबाई भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी अनन्य भक्ति को व्यक्त करते हुए स्वयं के कष्टों को दूर करने की प्रार्थना कर रहीं हैं |

व्याख्या- इस पद में मीरा भगवान श्री कृष्ण के विविध रूपों का वर्णन करते हुए कहती हैं कि हे श्रीकृष्ण! आप अपने भक्तों के सभी प्रकार के दुखों को हरने वाले हैं अर्थात् उनके प्रत्येक दुःख व कष्ट का नाश करने वाले हैं जैसे द्रौपदी की लाज/इज्ज़त उसके चीर/वस्त्र को बढ़ाकर रखी ,अपने भक्त प्रह्लाद को (हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से) बचाने के लिए नरसिंह का रूप धारण किया,हाथियों के राजा (ऐरावत हाथी) को डूबने से बचाने के लिए मगरमच्छ का वध किया | हे श्री कृष्ण! उसी तरह अपनी इस दासी अर्थात् मीरा के भी सारे दुःख हर लो अर्थात् सभी दुखों/सांसारिक संतापो का नाश कर दो |


(2)


स्याम म्हाने चाकर राखो जी,
गिरधारी लाला म्हाँने चाकर राखोजी।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ।
बिन्दरावन री कुंज गली में , गोविन्द लीला गास्यूँ।
चाकरी में दरसन पास्यूँ, सुमरन पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ , तीनूं बाताँ सरसी।
मोर मुगट पीताम्बर सौहे , गल वैजन्ती माला।
बिन्दरावन में धेनु चरावे , मोहन मुरली वाला।
ऊँचा ऊँचा महल बनावँ बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ ,पहर कुसुम्बी साड़ी।
आधी रात प्रभु दरसण ,दीज्यो जमनाजी रे तीरा।
मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर , हिवड़ो घणो अधीरा


शब्दार्थ –   

स्याम – श्री कृष्ण
चाकर – नौकर
रहस्यूँ – रहकर
नित – प्रतिदिन , हमेशा
दरसन – दर्शन
जागीरी – साम्राज्य
कुंज – पतली , संकरी
पीताम्बर – पीले  वस्त्र
धेनु – गाय
बारी – बगीचा
पहर – पहनकर
तीरा – किनारा
अधीरा – व्याकुल होना


इस पद में कवयित्री मीरा श्री कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम व भक्ति का वर्णन करते हुए श्री कृष्ण के दर्शन के लिए अपनी व्याकुलता व्यक्त कर रही हैं।

व्याख्या- इस पद में कवयित्री मीरा श्री कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति भावना को उजागर करते हुए कहती हैं कि  हे श्री कृष्ण! मुझे अपनी सेविका बना कर रख लो अर्थात् मीरा किसी भी तरह श्री कृष्ण के समीप रहना चाहती है फिर चाहे सेविका बन कर ही क्यों न रहना पड़े। 

 मीरा कहती हैं कि सेविका बनकर मैं श्री कृष्ण के लिए बाग-बगीचा लगाऊँगी ताकि सुबह उठ कर प्रतिदिन जब उनके प्रभु उसमें भ्रमण करें तो वह उनके दर्शन कर सकें।

 मीरा कहती हैं कि वृन्दावन की संकरी गलियों में मैं अपने स्वामी की लीलाओं का गुणगान करुँगी।

 चाकरी में खर्ची के रूप मे उन्हें अपने आराध्य के दर्शनों की अभिलाषा रुपी संपत्ति, प्रभु का स्मरण तथा भक्ति रुपी साम्राज्य की प्राप्ति होगी| (अर्थात् श्री कृष्ण की भक्ति को ही उन्होंने अपनी सम्पत्ति स्वीकार किया है)


{मीराबाई का मानना है कि नौकर बनकर उन्हें तीन फायदे होंगे:                                          पहला- उन्हें कृष्ण का सामीप्य मिलने के साथ-साथ दर्शन भी प्राप्त हो सकेंगे|                            दूसरा- उन्हें वृंदावन की संकरी गलियों मे अपने प्रभु की लीलाओं का गुणगान करने का सुअवसर मिल सकेगा अर्थात् प्रभु का नाम स्मरण करने का अवसर प्राप्त होगा |                                          तीसरा- उनकी भक्ति का साम्राज्य भी बढ़ता जाएगा।}  

      

मीरा श्री कृष्ण के रूप सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि उन्होंने पीले वस्त्र धारण किए हुए हैंसिर पर मोर के पंखों का मुकुट विराजमान है और गले में वैजन्ती फूलों की माला को धारण किया हुआ है।वृन्दावन में गाय चराते हुए श्रीकृष्ण जब मुरली बजाते है तो सबका मन मोह लेते हैं।
मीराबाई कहती है कि ऊँचे-ऊँचे महल के बीच-बीच मे खिडकियाँ बनाऊँगी त्ताकि जहाँ से वे अपने आराध्य/प्रिय के दर्शन लाल रंग की साड़ी पहनकर कर सके। मीरा कहती हैं कि हे मेरे प्रभु गिरधर नागर मेरा मन आपके दर्शन के लिए इतना बेचैन है कि वह सुबह का इंतजार नहीं कर सकता इसलिए श्री कृष्ण आधी रात को ही भले यमुना नदी के किनारे उन्हें दर्शन देने के लिए आ जाएँ वह उसके लिए भी तैयार है।

 


प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1 -:  पहले पद में मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती किस प्रकार की है ?

उत्तर- पहले पद में मीरा हरि की महानता तथा भक्त-वत्सलता का गुणगान करते हुए अपनी पीड़ा हरने की विनती करते हुए कहती है कि जिस प्रकार हे प्रभु आपने द्रोपदी के वस्त्र को बढ़ाकर उसके सम्मान की रक्षा कीप्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह का रूप धारण किया और हाथियों के राजा ऐरावत हाथी को मगरमच्छ के चंगुल से बचाकर उसे डूबने से बचाया ,उसी प्रकार मेरे भी सारे दुखों को हर लो अर्थात् सभी दुखों को समाप्त कर दो।

 

प्रश्न 2 -: दूसरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी क्यों करना चाहती है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर– श्रीकृष्ण का सानिध्य पाने हेतु मीराबाई श्याम की चाकरी करना चाहती हैं|वह उनकी अनन्य भक्त है तथा उनमे उनका एकनिष्ठ विश्वास है।   

 वे अपनी प्रेम-भक्ति की अभिव्यक्ति करने के लिए उनके लिए बाग लगाकर प्रतिदिन सवेरे उठकर उनके दर्शन करना चाहती हैं और वृंदावन की कुंज गलियों में घूम-घूमकर उनकी लीलाओं का गान करना चाहती हैं, जिससे उनकी भक्ति के तीनों रूप (भाव-भक्ति, दर्शन तथा स्मरण) की पूर्ति हो सके।

        

प्रश्न 3 -: मीरा ने श्री कृष्ण के रूप सौंदर्य का वर्णन कैसे किया है ?

उत्तर- मीरा श्री कृष्ण के रूप सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि उन्होंने सिर पर मोर पंख का मुकुट , पीले वस्त्र और गले में वैजयंती फूलों की माला को धारण किया हुआ है। जब श्री कृष्ण वृन्दावन में ग्वाल-बालो के साथ गाय चराते हुए बांसुरी बजाते है तो सब का मन मोह लेते हैं।


प्रश्न 4 - मीराबाई की भाषा शैली पर प्रकाश डालिए।

उत्तर- मीराबाई की भाषा सरल ,सहज और आम बोलचाल की भाषा है।

 इसमें राजस्थानी ,ब्रज, गुजराती ,पंजाबी और खड़ी बोली का मिश्रण है।

पदों में भक्तिरस है तथा अपने प्रभु के प्रति अपनी पीड़ा को अभिव्यक्त करने के लिए उन्होंने अत्यंत भावानुकूल एवं विषय अनुरूप शब्दावली का प्रयोग किया है।

भाषा में प्रवाहात्मकता का गुण सर्वत्र विद्यमान होने के साथ-साथ अनुप्रास व उपमा आदि अलंकारों का भी सुंदर प्रयोग किया गया है।



प्रश्न 5 -: वे श्री कृष्ण को पाने के लिया क्या - क्या कार्य करने को तैयार हैं ?

उत्तर- मीराबाई श्री कृष्ण को पाने के लिए अनेक कार्य करने के लिए तैयार हैं - वे कृष्ण की सेविका बन कर उनके घूमने के लिए बाग़ बगीचे लगाने के लिए तैयार हैं ,ऊँचे- ऊँचे महलों में खिड़कियाँ बनाना चाहती हैं ताकि श्री कृष्ण के कुसुम्बी रंग की साडी पहन कर दर्शन कर सके और आधी रात को यमुना नदी के किनारे दर्शन करने के लिए भी तैयार हैं।

 

काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए 


1) हरि आप हरो जन री भीर।

     द्रोपदी री लाज राखी ,आप बढ़ायो चीर।

     भगत कारण रूप नरहरि ,धरयो आप सरीर।

काव्य-सौन्दर्य :-  इन पंक्तियों में मीरा श्री कृष्ण के प्रति अपने भक्ति -भाव को प्रकट कर रही है। मीरा कहती है कि हे श्री कृष्ण आप अपने भक्तों के कष्टों को हरने वाले हो। आपने द्रोपदी की लाज उसके वस्त्र को बढ़ाकर रखी तथा अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए नरसिंह का रूप भी धारण किया।

इस प्रकार यहाँ भक्ति रस की प्रधानता है |

 

2 ) बूढ़तो गजराज राख्यो ,काटी कुञ्जर पीर।

     दासी मीराँ लाल गिरधर , हरो म्हारी भीर।।

काव्य-सौन्दर्य :-  इन पंक्तियों में मीरा श्री कृष्ण से उनके दुःख दूर करने की विनती करती हैं। इन पंक्तिओं में तत्सम और तद्भव शब्दों का सुन्दर मिश्रण है। मीरा कहती हैं कि जिस तरह हे श्री कृष्ण आपने हाथियों के राजा ऐरावत को मगरमच्छ के चंगुल से बचाया था उसी प्रकार मेरे भी हर दुःख को दूर कर दो।

 

3 )चाकरी में दरसन पास्यूँ ,सुमरन पास्यूँ खरची।

    भाव भगती जागीरी पास्यूँ ,तिन्नू बाताँ सरसी।।

काव्य-सौन्दर्य :-  इन पंक्तियों में मीरा श्री कृष्ण के प्रति अपनी भाव भक्ति व्यक्त कर रही है। यहाँ मीरा श्री कृष्ण के पास रहने के तीन फायदे बताती है।  पहला -उन्हें हमेशा दर्शन प्राप्त हों सकेंगे ,दूसरा -उन्हें श्री कृष्ण को स्मरण करने का अवसर मिल सकेगा और तीसरा -उनकी भाव भक्ति का साम्राज्य बढ़ता ही जाएगा।

 


Harsh Lata Atri

 

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