आत्मत्राण || Atamtran || स्पर्श || Sparsh || कक्षा 10 || Class 10 || Question Answers || Summary || कविता का सार || प्रश्नोंत्तर ||



कविता का सार

कविकुल गुरु रवींद्रनाथ टैगोर इस कविता में ईश्वर से यह याचना करते हैं कि उनपर जब 

भी कोई संकट आए तब ईश्वर उनकी सहायता के लिए दौड़े-दौड़े न आएँ बल्कि वे 
इतनाभर कर दें कि उनकी आत्मा को भयमुक्त कर दें ताकि वे सभी संकटों का सामना खुद कर सके।जब भी कवि का सामना किसी विषम स्थिति से हो अथवा उन्हें अपने सम्मुख कोई दुविधा खड़ी दिखाई दे तो वे स्वयं निर्भय होकर उसका सामना कर सकें, उसे 
पराजित कर सकें। विपत्ति से डरें नहीं, दुख-ताप से घबराएँ नहीं तथा संकट के समय कोई 
सहायक न मिलने पर अपनी ताकत भरोसा बनाए रखें। किसी काम में लाभ न मिले, हानि उठानी पड़े तो भी मन में यह भावना जन्म न ले कि मेरा कुछ नष्ट हो गया। मुझमें अनेक संकटों से पार पाने कीआत्मोद्धार करने की शक्ति विद्यमान रहे। मैं निडर होकर अपने सभी कष्टों का वहन कर सकूँ। दुखों से भरी रात में मेरे साथ कोई धोखाधड़ी हो जाए, तब भी तुम(ईश्वर)पर मेरा विश्वास कायम रहे और मेरे मन में क्षणभर को भी यह संदेह पैदा न हो कि यह सब तुमने किया है। 


1.

विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं 
केवल इतना हो (करुणामय) 
कभी न विपदा में पाऊँ भय ।
दुख-ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही
पर इतना होवे (करुणामय)
दुख को मैं कर सकूँ सदा जय ।
 
सरलार्थ: अपने भक्तों पर, याचकों पर, संकटग्रस्त लोगों पर, शरणागत पर कृपा करने के लिए विख्यात हे मेरे प्रभु, करुणामय, कृपानिधान, तुमसे यह अपेक्षा नहीं रखता कि तुम मुझे मुसीबतों से बचाओ, तुम तो केवल मुझे इतना आत्मबल दे दो, मेरी आत्मा को इतना सबल बना दो कि मुझे कभी किसी संकट से डर ही न लगे। मैं तुमसे यह उम्मीद नहीं करता कि कष्ट की पीड़ा से दुखी मेरे मन को तुम ढाढ़स बँधाने आओ। हे मेरे कृपानिधान, मैं तो केवल यह चाहता हूँ कि मुझमें इतना आत्मबल हो कि मैं हर दुख को, कष्ट को खुद पराजित कर सकूँ।


2. 

कोई कहीं सहायक न मिले
तो अपना बल पौरुष न हिले;
तो भी मन में ना मानूँ क्षय ॥
मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं
बस इतना होवे(करुणामय)
 तरने की हो शक्ति अनामय ।
 
 सरलार्थ : किसी संकट में घिर जाने पर भी अपने बल और पौरुष(पराक्रम) पर मेरा भरोसा बना रहे। मैं यह सोचकर कमज़ोर न हो जाऊ कि आसपास कोई मददगार नहीं है। यदि किसी कार्य-व्यापार में मुझे नुकसान उठाना पडे तथा मेरा लाभ भी न हो तब उस स्थिति मे भी मेरे मन में जरा भी यह विचार न आए कि मुझे क्षति हुई है, मुझसे कुछ छिन गया है। हे मेरे करुणानिधान, मैं तुमसे इतना चाहता हूँ कि तुम तो इतनाभर कर दो कि रोगरहित(स्वस्थ) रहते हुए मुझमें स्वयं अपना उद्धार करने की, उससे उबरने की क्षमता बनी रहे।
 

3.
 
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही केवल
 
सरलार्थ: मेरे कंधों पर जो जिम्मेदारियाँ हैं, उनमें से कुछ कम करके मुझे ढाढ़स भले ही न 

बँधाएँ, मगर हे सब पर करुणा करने वाले, मेरा इतना कहना है कि मुझको इतनी शक्ति देना कि मैं अपने हिस्से के सभी दायित्व बिना डरे पूरे कर सकूँ। सुख-समृद्धि के दिनों में 

मुझमें अभिमान का भाव न हो। मेरा मस्तक झुका ही रहे, मुझमें सहृदयता बनी रहे। दुख से भरी रात में जब सारा संसार मुझे धोखा देने पर उतारू हो, मेरी मदद के लिए कहीं से कोई हाथ आगे न बढ़े, तब भी हे मेरे प्रभु, मुझमें इतनी समझ बनी रहे कि मैं इन सबके लिए तुम्हें दोषी न मानने लगूँतुमपर से मेरा भरोसा न उठे। मुझे ऐसा न लगे कि यह सब तुम्हारा किया-धरा है अथवा तुम भी मुझे संकट से उबारना नहीं चाहते।


(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -

1. कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है ?

कवि अपने आराध्य से आत्मबल प्राप्त करने हेतु प्रार्थना कर रहा है। कवि ईश्वर से चाहता है कि वह उसे इतना आत्मबल दे कि वह स्वयं मुसीबतों का सामना कर सके, दुखों में भी ईश्वर को न भूले और उसका आत्मबल एवं विश्वास सदैव हर परिस्थिति मे बना रहे।

 

2. "विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं' - कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है ?

कवि यह प्रार्थना नहीं कर रहा कि ईश्वर उसे विपदाओं से बचाए। वह आम आदमी की तरह गिड़गिड़ाकर सुखों की भीख नहीं माँगना चाहता। कवि नहीं चाहता कि ईश्वर उसके दुखों और संकटों को दूर करे बल्कि वह खुद अपने दुखों से जूझना चाहता है। वह ईश्वर से केवल हिम्मत और आत्मबल माँगता है। वह स्वयं संघर्ष करना चाहता है। वह चाहता है कि ईश्वर उसके प्रेरक बने, सहायक नहीं।

 

3. कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है ?

कवि कहता है कि यदि ऐसी परिस्थिति आ जाए कि कोई सहायक भी न मिले अर्थात कोई 

सहायता करनेवाला भी न हो तो भी मेरा आत्मबल, हिम्मत, साहस और बल-पौरुष बना रहे 

अर्थात कवि ईश्वर से साहस माँग रहा है ताकि वह दुखों का सामना कर सके।

 

4. अंत में कवि क्या अनुनय करता है ?

कवि ने इस पूरी कविता में ईश्वर से साहस और आत्मबल माँगा है। अंत में कवि भावुक 

नजर आता है और वह कहता है कि मैं केवल दुखों में ही आपको याद न रखूँ बल्कि 

सुखों के आने पर भी हर क्षण आपकी याद बनी रहे, आपका चेहरा मेरी आँखों के सामने 

रहे। मेरे जीवन में चाहे दुखों के कितने ही बादल क्यों न छा जाएँ परंतु मैं प्रत्येक विपरीत 

स्थिति में भी आपको याद रखूँ, मेरा विश्वास, मेरी आस्था सदा अटल रहे।

 

5. 'आत्मत्राण' शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

'आत्मत्राण' शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण है। यह दो शब्दों से मिलकर बना सामासिक शब्द है- 

आत्म और त्राण। इसमें तत्पुरुष समाग होने के कारण अर्थ होगा 'आत्मा का त्राण।' 'त्राण

शब्द का आशय इस कविता के संदर्भ में बचाव, आश्रय और भय निवारण से लिया जा 

सकता है। इस कविता का यह शीर्षक पूरी तरह सार्थक है। कवि ईश्वर की अनुकंपा तो 

चाहता है परंतु मददगार के रूप में नहीं, वरदानी के रूप में, ताकि उसका अपना बल, पौरुष

हिम्मत, साहस, आत्मविश्वास एवं आत्मबल विपरीत परिस्थितियों में भी न टूटे। कवि 

चाहता  है कि ईश्वर उसे दुखों और भय से लड़ने की शक्ति दे अर्थात उसके भय का 

निवारण करे,  उसकी आत्मा का प्राण अर्थात रक्षा करे व्यक्ति तब मरा हुआ माना जाता है जब उसकी  हिम्मत टूट जाती है अतः कवि बल, धैर्य, पौरुष और साहस चाहता है। आत्मा का अर्थ यहाँ स्थूल आत्मा से नहीं है बल्कि आत्मा प्रतीक है- साहस और आत्मविश्वास की।

 

6. अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना के अतिरिक्त और क्या-क्या प्रयास करते 

हैं? लिखिए।

अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए दो प्रकार के प्रयास किए जाते हैं- आंतरिक और बाह्य 

आंतरिक प्रयासों में व्यक्ति तप, साधना, ध्यान, जप आदि करता है तो बाह्य प्रयासों में 

व्यक्ति समाजोपयोगी कार्य करता है, जैसे- दान देना, दीन-दुखियों की मदद करना, कॉलेज

अस्पताल खोलना आदि। मैं अपने स्तर पर दोनों ही कार्य करता हूँ। इनसे हटकर मेरा 

विश्वास कर्म पर है। मैं कर्म करने में विश्वास रखता हूँ। ईश्वर का स्मरण और प्रार्थना भी 

आवश्यक है। प्रभु कृपा से ही सभी काम होते हैं।

 

7. क्या कवि की यह प्रार्थना आपको अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है ? यदि हाँ, तो कैसे ?

'आत्मत्राण' कविता अन्य प्रार्थना गीतों से बिलकुल अलग है। अन्य प्रार्थनाओं में ईश्वर से 

दुखों को दूर करने की विनय की जाती है। उन गीतों में ईश्वर धन की प्राप्ति, सुखों की 

चाह, भौतिक वस्तुएँ, स्वास्थ्य लाभ आदि की कामना की जाती है। इस गीत में ऐसा कुछ 

भी नहीं चाहा गया है। इस प्रार्थना गीत में कवि यह नहीं चाहते कि ईश्वर उनके लिए सब 

कुछ कर दे। कवि कर्म करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि ईश्वर उन्हें संघर्ष करने की 

हिम्मत दे। वे दुखों से घबराएँ नहीं, उनपर अपने प्रयासों से विजय पा सकें और घोर संकटकाल में घिरने पर भी ईश्वर पर कभी संशय न करें। उनका आत्मविश्वास और साहस बना रहे।



Comments

Post a Comment