पतझर में टूटी पत्तियाँ (झेन की देन) ॥ लेखक परिचय || पाठ प्रवेश || प्रश्न उत्तर || Class 10 || कक्षा 10 ॥ स्पर्श ॥ knowinghindi.blogspot.com ||
लेखक परिचय
लेखक – रविंद्र केलेकरजन्म – 7 मार्च 1925 (कोंकण)
मृत्यु – 2010
केलेकर ने अपने लेखन में जन-जीवन के विविध पक्षों , मान्यताओं और व्यक्तिगत विचारों को देश और समाज के परिपेक्ष्य में प्रस्तुत किया है|इनकी अनुभवजन्य टिप्पणियों में अपने चिंतन की मौलिकता के साथ ही मानवीय सत्य तक पहुँचने की सहज चेष्टा रहती है |
कोंकणी और मराठी के शीर्षस्थ लेखक और पत्रकार रविंद्र केलेकर की कोकणी में पच्चीस , मराठी में तीन , हिंदी और गुजराती में भी कुछ एक पुस्तकें प्रकाशित हैं | केलेकर ने काका कालेलकर की अनेक पुस्तकों का संपादन व अनुवाद भी किया है |
गोवा कला अकादमी के साहित्य पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित केलेकर की प्रमुख कृतियाँ हैं – कोकणी में उजवाढाएचे सूर , समिधा ,सांगली
मराठी में कोकणीचें राजकरण , जापान जसा दिसला
हिंदी में पतझर में टूटी पत्तियाँ
पाठ प्रवेश
दूसरा प्रसंग (झेन की देन) बौद्ध दर्शन में वर्णित ध्यान की उस पद्धति की याद दिलाता है जिसके कारण जापान के लोग आज भी अपनी व्यस्ततम दिन भर के कामों के बीच भी कुछ चैन भरे या सुकून के पल हासिल कर ही लेते हैं।
जापान में मानसिक रोगियों की संख्या बहुत अधिक है |
जापानियों के जीवन की रफ़्तार काफ़ी बढ़ गई है वे एक महीने के काम को एक दिन में पूर्ण कर लेना चाहते हैं |
जापानियों के दीमाग में स्पीड का इंजन लगा होता है इससे उनके दीमाग की रफ़्तार काफ़ी बढ़ जाती है|
यहाँ के मानसिक रोगी ती सेरेमनी में जाकर शांति प्राप्त करते है|
टी सेरेमनी जापान की एक चाय पीने की विधि है |
इसमें एक सामान्य इमारत में एक पर्णकुटी बनी रहती है वहाँ केवल दो-तीन लोगों को ही एक साथ प्रवेश दिया जाता है|
पर्णकुटी में बैठा चाजीन अंगीठी जलाकर चाय बनाता है |
प्यालों में दो घूंट से ज्यादा चाय नहीं दी जाती इसी चाय को डेड घंटे तक पीना होता है |
चाय पीने के दौरान दीमाग की रफ़्तार काफ़ी धीमी हो जाती है|
उस समय व्यक्ति को ऐसा आभास होता है कि जैसे मानो वह वर्तमान में जी रहा है, भूत व भविष्यत दोनों काल गायब हो जाते हैं तथा वर्तमान काल अनंतकाल जितना विस्तृत हो जाता है|
झेन की देन
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
प्रश्न 4.
लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगने की बात क्यों कही है?
उत्तर-
लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगने की बात इसलिए कही क्योंकि वे अमेरिका से प्रतिस्पर्धा करते हुए प्रत्येक काम को तीव्र गति से करते हुए प्रगति करना चाहते हैं। महीने के काम को एक दिन में पूरा करने का प्रयास करते हैं |
प्रश्न 5.
जापानी में चाय पीने की विधि को क्या कहते हैं?
उत्तर-
जापानी में चाय पीने की विधि को चा-नो-यू कहते हैं।
प्रश्न 6.
जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की क्या विशेषता है?
उत्तर-
जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, वह एक पर्णकुटी होती है। प्राकृतिक ढंग से सजे हुए इस छोटे से स्थान में केवल तीन लोग बैठकर चाय पी सकते हैं।वहाँ अत्यन्त शांति और गरिमा के साथ चाय पिलाई जाती है। शांति उस स्थान की मुख्य विशेषता है |
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
प्रश्न 2.
चाजीन ने कौन-सी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से पूरी कीं?
उत्तर-
चाजीन ने टी-सेरेमनी से जुड़ी सभी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से की। यह सेरेमनी एक पर्णकुटी में पूर्ण हुई। चाजीन द्वारा अतिथियों का उठकर स्वागत करना, आराम से अँगीठी सुलगाना, चायदानी रखना, दूसरे कमरे से चाय के बर्तन लाना, उन्हें तौलिए से पोंछना व चाय को बर्तनों में डालने आदि की सभी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग अर्थात् बड़े ही आराम से, अच्छे व सहज ढंग से की।
प्रश्न 3.
उत्तर-
‘टी-सेरेमनी’ में केवल तीन आदमियों को प्रवेश दिया जाता था। ऐसा शांति बनाए रखने के लिए किया जाता था।
प्रश्न 4.
चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या परिवर्तन महसूस किया?
उत्तर-
चाय पीने के बाद लेखक ने महसूस किया कि जैसे उसके दिमाग की गति मंद हो गई हो। धीरे -धीरेउसका दिमाग चलना बंद हो गया हो और उसे सन्नाटे की आवाजें भी सुनाई देने लगीं। उसे लगा कि मानो वह अनंतकाल मे जी रहा है अर्थात वह भूत और भविष्य दोनों का चिंतन न करके वर्तमान में जी रहा हो तथा उसे वह पल सुखद प्रतीत हुए।
प्रश्न 6.
लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के क्या-क्या कारण बताए? आप इन कारणों से कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर-
लेखक के मित्र ने मानसिक रोग होने के निम्न कारण बताए हैं -
प्रश्न 7.
लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों
कहा होगा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लेखक ने केवल वर्तमान को सत्य माना है और उसी सत्य में सभी को जीने के लिए प्रेरित किया है क्योंकि ऐसा करने से स्वास्थ्य ठीक रहता है।वर्तमानकाल ही इस मिथ्या ससार का एकमात्र सत्य है। भूतकाल इसलिए मिथ्या है क्योकि वह बीत चुका है और कभी लौटेगा नहीं। उस काल की यादों के अतिरिक्त हमारे पास कुछ शेष नहीं होता। भविष्यत्काल इतना अनिश्चित है कि उसके विषय में कुछ नही कहा जा सकता।आज तक कोई उसके विषय में नहीं जान पाया इसलिए इस काल को भी सत्य नही माना जा सकता। अतः वर्तमानकाल के क्षणों में तनावरहित होकर कर्म करते हुए अपने जीवन को सहजता से जीते हुए उसका आनंद लेना चाहिए क्योकि यही सत्य है।
प्रश्न 5.
नीचे दिए गए वाक्यों को संयुक्त
वाक्य में बदलकर लिखिए-
(क) 1. अँगीठी सुलगायी।
2. उस पर चायदानी रखी।
(ख) 1. चाय तैयार हुई।
2. उसने वह प्यालों में भरी।
(ग) 1. बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया।
2. तौलिये से बरतन साफ़ किए।
उत्तर-
(क) अँगीठी सुलगायी और उस पर
चायदानी रखी।
(ख) चाय तैयार हुई और उसने वह
प्यालों में भरी।
(ग) बगल के कमरे से जाकर कुछ
बरतन ले आया और तौलिये से बरतन साफ़ किए।
प्रश्न 6.
(क) 1. चाय पीने की यह एक विधि है।
2. जापानी में चा-नो-यू कहते हैं ।
(ख) 1. बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बरतन था ।
2. उसमें पानी भरा हुआ था ।
(ग) 1. चाय तैयार हुई ।
2. उसने वह प्यालों में भरी ।
3. फिर वे प्याले हमारे सामने रख दिए ।
उत्तर-
(क) चाय पीने की यह एक विधि है जिसे जापानी में
चा-नो-यू कहते हैं।
(ख) उस बर्तन में पानी भरा था जो बाहर बेढब-सा
मिट्टी का बना था।
(ग) जब चाय तैयार हुई तब वह प्यालों में भर कर
हमारे सामने रखी गई।
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