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डायरी का एक पन्ना


पाठ का सार

प्रस्तुत पाठ सीताराम सेकसरिया द्वारा लिखित संस्मरण हमें 1930-31 में देश में चल रही राजनैतिक गतिविधियों के बारे में बताता है| इस पाठ में लेखक की निजी डायरी में दर्ज 26जनवरी1931 की घटनाओं का क्रमानुसार वर्णन है, जो यह दर्शाता है कि बंगाल के लोगों ने गुलाम भारत के दूसरे स्वतंत्रता संग्राम मे पूरे जोश व उत्साह के साथ भाग लिया था| इससे पहले यह समझा जाता रहा था कि बंगाल के लोग स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार(इच्छुक) नहीं हैं किंतु 26 जनवरी1931 की घटनाओं ने यह साबित कर दिया कि देश की स्वतंत्रता के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं तथा किसी से पीछे नहीं हैं| पुलिस की बर्बरता व कठोरता के बावजूद भी कानून भंग करते हुए हजारों की संख्या में प्रत्येक वर्ग के लोगों ने जुलूस में हिस्सा लिया,मोनुमेंट पर निर्धारित समय यानी चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडा फहराया और स्वाधीनता की प्रतिज्ञा पढ़ी|

इस प्रकार यह पाठ हमारे क्रांतिकारियों की कुर्बानियों को तो याद दिलाता ही है साथ ही साथ यह भी सीख देता है कि यदि एक समाज या सभी लोग एक साथ सच्चे मन से कोई कार्य करने के लिए दृढ़ संकल्प हो तो ऐसा कोई भी काम नहीं है जो वो नहीं कर सकते।

 

 प्रश्न-उत्तर

 

 प्रश्न1) कलकत्तावासियों के लिए 26 जनवरी का दिन क्यों महत्त्वपूर्ण था ?

उत्तर) 26 जनवरी 1930 में परतंत्र भारत में जब पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था तब वहाँ के लोगो ने खास जोश नहीं दिखया था।26 जनवरी 1931 को उसकी पुनरावृत्ति के अवसर पर कलकत्तावासियों को अपने ऊपर लगे हुए इस कलंक को धोने का सुअवसर मिला था  इसलिए यह दिन उनके लिए महत्त्वपूर्ण था |

प्रश्न 2) 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए क्या क्या तैयारियाँ की गईं ?

उत्तर: 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए कलकत्ता के प्रत्येक भाग व अधिकांश मकानों पर झंड़े लगाए गए थे| लोगों ने अपने घरों को खूब सजाया था, कई मकान तो इतने सजाए गए थे कि ऐसा लग रहा था कि मानो स्वतंत्रता मिल गई हो|

 केवल प्रचार पर ही दो हज़ार रूपए खर्च किए गए थे तथा कार्यकर्ताओं को उनका कार्य घर - घर जाकर भी समझाया गया था|

इस दिन को अमर बनाने के लिए मोनुमेंट के नीचे सभा करने तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ने का आयोजन भी किया गया था।

प्रश्न 3) पुलिस कमिश्नर के नोटिस और कौंसिल के नोटिस में क्या अंतर है ?

उत्तर : पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकाला था कि अमुक - अमुक धारा के अनुसार कोई सभा नहीं हो सकती। यदि कोई सभा में जाता है तो उसे दोषी समझा जाएगा।

कौंसिल की ओर से नोटिस निकला था कि मोनुमेंट के नीचे ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडा फहराया जाएगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। सर्वसाधारण की उपस्थिति होनी चाहिए। इस तरह दोनों नोटिस एक दूसरे के विरुद्ध थे।

प्रश्न 4) डॉ. दास गुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख रेख तो कर ही रहे थे ,उनके फोटो भी उतरवा रहे थे। उन लोगों के फोटो खिचवाने की क्या वजह हो सकती थी ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : डॉ. दास गुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख रेख तो कर ही रहे थे ,उनके फोटो भी उतरवा रहे थे। उन लोगों के फोटो खिचवाने की दो वजह हो सकती थी- एक तो यह कि अंग्रेजों के अत्याचारों तथा देशवासियो द्वारा किए जानेवाले स्वतंत्रता संघर्ष से समस्त देशवासियों को अवगत कराया जा सके।

दूसरी वजह यह हो सकती है कि बंगाल या कलकत्ता पर जो कलंक था कि वहाँ स्वतंत्रता के लिए कोई काम नहीं हो रहा है, इस कलंक को भी काफी हद तक धोया जा सकता था और साबित किया जा सकता था कि वहाँ भी बहुत काम हो रहा है अर्थात लोग स्वतंत्र होने के लिए तत्पर है।

प्रश्न 5) सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की क्या भूमिका थी ?

उत्तर : सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्रियों ने अलग अलग जगहों से अपना जुलूस निकालने और सही जगह पर निर्धारित समय पर पहुँचने की भरसक कोशिश कीं। जब सुभाष बाबू को गिरफ्तार कर लिया गया तब स्त्रियों ने मोनुमेंट की सीढ़ियों पर चढ़कर झंडा फहराया तथा घोषणा-पत्र पढ़ा।

धर्मतल्ले के मोड़ पर वे धरने के लिए बैठीं,पुलिस के अत्याचारों का सामना किया तथा विमल प्रतिभा,जानकी देवी और मदालसा आदि ने जुलूस का सफ़ल नेतृत्व भी किया| इस प्रकार सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका थी।

प्रश्न 6) जुलूस के लालबाज़ार आने पर लोगों की क्या दशा हुई ?

उत्तर : जुलूस के लाल बाजार आने पर पुलिस ने सुभाष बाबू को गिरफ्तार करके लॉकअप में भेज दिया,भीड़ पर डंडे चलाए तथा स्त्रियों का नेतृत्व करने वाली मदालसा को भी पकड़कर लॉकअप में भेजा गया, जहाँ उन्हें मारा भी गया।इस प्रकार इस जुलूस में लगभग 200 व्यक्ति घायल हुए थे जिनमे से कुछ की हालत गंभीर थी।

प्रश्न 7) 'जब से कानून भंग का काम शुरू हुआ है तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे मैदान में नहीं की गई थी और यह सभा तो कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी।' यहाँ पर कौन से और किस के द्वारा लागू किए गए कानून को भंग करने की बात कही गई है ? क्या कानून भंग करना उचित था ? पाठ के सन्दर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर : यहाँ पर अंग्रेज प्रशासन द्वारा सभा ना करने के कानून को भंग करने की बात कही है। प्रत्येक देशवासी अंग्रेजों के अत्याचार से मुक्त होने तथा स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ त्यागने के लिए तैयार था किंतु अंग्रेजी हुकूमत ने सभा करने ,झंडा फहराने और जुलूस में शामिल होने को गैरकानूनी घोषित कर दिया था। अंग्रेजी प्रशासन नहीं चाहता था कि लोगो में स्वतंत्रता की भावना जागृत हो। ये कानून वास्तव में भारत वासियों की स्वतंत्रता को कुचलने वाला कानून था| अतः मेरे विचार में इस कानून का उल्लंघन करना उचित था।

प्रश्न 8) बहुत से लोग घायल हुए,बहुतों को लॉकअप में रखा गया ,बहुत सी स्त्रियाँ जेल गई ,फिर भी इस दिन को अपूर्व बताया गया है। आपके विचार से यह सब अपूर्व क्यों है ?अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर : 26 जनवरी 1931 का दिन अपूर्व था क्योंकि क्योंकि इस दिन इतनी बडी संख्या मे लोगों ने अंग्रेजी प्रशासन के विरोध के बावजूद भी परतंत्र भारत के स्वतंत्रता दिवस की पुनरावृत्ति को पूरे जोश व उत्साह से मनाया।

लोगों पर लाठी चार्ज किया गया, गिरफ्तार किया गया, लॉकअप में भी भेजा गया किंतु उसके बावजूद भी लोग जुलूस में भाग लेने से पीछे नहीं हटे और वंदे मातरम के नारे लगाते हुए अंग्रेजी प्रशासन को खुली चुनौती देते रहे।

अंग्रेजों द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों को देखने के बाद भी स्त्रियों के जुलूस ने मोनुमेंट पर झंडा फहराया और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढी़।

 

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