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कर चले हम फ़िदा ( कविता )
कर चले हम फ़िदा
कवि परिचय
कवि – कैफ़ी आज़मी
जन्म – 1919 (उत्तर प्रदेश )
मृत्यु – 2002
जिंदगी सभी प्राणियों को प्रिय होती है। इसे कोई ऐसे ही बेमतलब गवाना नहीं चाहेगा। ऐसा रोगी जो ठीक नहीं हो सकता वो भी जीवन जीने की इच्छा करता है। जीवन की रक्षा करना अपनी सुरक्षा करना और उस जीवन को बनाये रखने के लिए प्रकृति ने सिर्फ साधन ही उपलब्ध नहीं करवाएं है बल्कि सभी जीव जंतुओं को उसे बनाने और बचाये रखने की भावना भी दी है। इसीलिए तो शांति प्रिय जीव भी अपनी जान बचाने के लिए हमला करने के लिए तैयार रहते हैं।
लेकिन सैनिक का जीवन बिलकुल इसके विपरीत होता है। क्योंकि सैनिक उस समय सीना तान कर खड़ा हो जाता है जब उसके जीवन पर नहीं बल्कि दूसरों के जीवन और आज़ादी पर संकट आता है। जबकि ऐसी स्थिति में उसे पता होता है कि दूसरों की आज़ादी और जिंदगी भले ही बची रह सकती है परन्तु उसकी जान जाने की सम्भावना सबसे अधिक होती है।
प्रस्तुत पाठ जो युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म ‘हकीकत’ के लिए लिखा गया था, ऐसे ही सैनिकों के दिल की बात बयान करता है जिन्हें अपने किये पर नाज है। इसी के साथ उन्हें देशवासियों से कुछ आशाएँ भी हैं। जिनसे उन्हें आशाएँ हैं वो देशवासी हम और आप हैं तो इसलिए इस पाठ के जरिये हम जानेगे की हम किस हद तक उनकी आशयों पर खरे उतरे हैं।
व्याख्या
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई
फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया
कट गए सर हमारे तो कुछ गम नहीं
सर हिमालय का हमने न झुकने दिया
मरते-मरते रहा बाँकपन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
शब्दार्थ-
फ़िदा – न्योंछावर
हवाले – सौंपना
बाँकपन – वीरता का भाव
व्याख्या - सैनिक कहते है कि हम अपनी देश की रक्षा के लिए अपना शरीर और प्राण न्योंछावर करके इस दुनिया से जा रहे है ,अब यह देश तुम्हारे हवाले है ,,तुम्ही ने इसकी रक्षा करनी है।
यद्यपि देश के लिए लडते-लडते हमारी साँसे रुकने लगी थी और हमारी नाड़ियों में खून जमता जा रहा था लेकिन फिर भी हम बर्फ से ढ़की सीमओ पर आगे ही आगे बढ़ते गए, अपने बढ़ते क़दमों को हमने रोका नही अर्थात हार नही मानी और दुश्मनों को पीछे धकेलते गए।
देश के गौरव की रक्षा करते हुए यदि हमारे सिर कट भी गए तो हमे इसका कोई दुख नही ,हमे प्रसन्नता है कि हमने जीते-जी हिमालय का गौरव कम नही होने दिया अर्थात हिमालय पर दुश्मनों के कदम नहीं पड़ने दिए।
मरते दम तक वीरता के साथ दुश्मनों का मुकाबला किया औरअब इस देश की सुरक्षा का भार आप देशवासियों को सौंप रहे हैं।
जिंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर
जान देने की रुत रोज आती नहीं
हुस्न और इश्क दोनों को रुस्वा करे
वो जवानी जो खूँ में नहाती नहीं
आज धरती बनी है दुलहन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
रुत – मौसम
हुस्न – सुन्दरता
रुस्वा – बदनाम
खूँ – खून
व्याख्या - सैनिक कहते हैं कि हमारे पूरे जीवन में हमें जिन्दा रहने के कई अवसर मिलते हैं लेकिन देश के लिए प्राण न्योछावर करने का सौभाग्य कभी कभी-कभी ही मिलता है ।
जवानी की सार्थकता तभी है,जब वह सुंदरता व प्रेम की रक्षा के लिए अपना बलिदान देने के लिए तैयार हो। लेकिन जो जवानी सुंदरता व प्रेम की रक्षा करने के लिए बलिदान नही देती ,वह सुंदरता और प्रेम दोनो को ही बदनाम करती है।
देश की धरती को दुल्हन की तरह मानते है और कहते है कि जिस तरह दुल्हन को लाल वस्त्र व वस्तुओ से सजाया जाता है उसी प्रकार हमने इस धरती को अपने लाल खून से रंग /सजा दिया है ( या जिस प्रकार से दुल्हन के मान-सम्मान को बचा कर रखा जाता उसी प्रकार अब तुमने इस धरती रूपी दुल्हन के मान-सम्मान को बचाना है) । अब हम देश की रक्षा का दायित्व आप देशवासियों पर छोड़ कर जा रहे हैं।
राह कुर्बानियों की न वीरान हो
तुम सजाते ही रहना नए काफ़िले
फतह का जश्न इस जश्न के बाद है
जिंदगी मौत से मिल रही है गले
बाँध लो अपने सर से कफन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
शब्दार्थ
कुर्बानियाँ – बलिदान
वीरान – सुनसान
काफ़िलें – यात्रिओं के समूह
फतह – जीत
जश्न – ख़ुशी
व्याख्या - सैनिक कहते हैं कि हम तो देश के लिए बलिदान दे रहे हैं परन्तु हमारे बाद भी ये सिलसिला चलते रहना चाहिए। देश के लिए मर-मिटने वाले सैनिको के नए-नए जत्थे तैयार होते रहने चाहिए।
जीत की ख़ुशी तो देश पर प्राण न्योछावर करने की ख़ुशी के बाद है अर्थात् संघर्ष और बलिदान के बाद अगला उत्सव निश्चित ही जीत का होगा।
ऐसा लगता है मानो जिंदगी मौत से गले मिल रही हो । अब ये देश आप देशवासियों को सौंप रहे हैं अब आप अपने सर पर मौत की चुनरी बांध लो अर्थात अब आप देश की रक्षा के लिए तैयार हो जाओ।
खींच दो अपने खूँ से जमीं पर लकीर
इस तरफ आने पाए न रावन कोई
तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे
छू न पाए सीता का दामन कोई
राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
शब्दार्थ
जमीं – जमीन
लक़ीर – रेखा
सैनिक कहते हैं कि लक्ष्मण रेखा के समान इस धरती पर तुम भी अपने खून से रेखा खींच दो और ये तय कर लो कि उस रेखा को पार करके कोई रावण रूपी दुश्मन इस पार ना आ पाए।
सैनिक अपने देश की धरती को सीता के आँचल की तरह मानते हैं और कहते हैं कि अगर कोई हाथ आँचल को छूने के लिए आगे बड़े तो उसे तोड़ दो।
अपने वतन की रक्षा के लिए तुम ही राम हो और तुम ही लक्ष्मण हो अर्थात् हर रूप मे इस देश की रक्षा का दायित्व तुम पर है।अब यह देश तुम्हारे हाथो मे सौपकर हम संसार से विदा ले रहे है
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रश्न 1.
क्या इस गीत की कोई ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है?
उत्तर-
हाँ, इस गीत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। सन् 1962 में भारत पर चीन ने आक्रमण किया था जिसमे अनेक भारतीय सैनिक देश के सम्मान की रक्षा करते हुए शहीद हो
गए थे। इसी युद्ध की पृष्ठभूमि पर चेतन आनंद ने ‘हकीकत’ फ़िल्म बनाई थी जिसमे भारत और चीन के युद्ध की वास्तविकता को मार्मिकता के साथ दर्शाया गया था। यह गीत इसी फ़िल्म के लिए लिखा गया था जिसमे शहीद होते हुए सैनिको की मनोव्यथा को अभिव्यक्त किया गया था |
प्रश्न 2.
‘सर हिमालय का हमने न झुकने दिया’, इस पंक्ति में हिमालय
किस बात का प्रतीक है?
उत्तर-
हिमालय भारत उत्तर में उसके रक्षक व प्रहरी के रूप में स्थित है इस प्रकार यह हमारे देश के मान सम्मान का प्रतीक है । सन् 1962 में चीनने हमारे इसी गौरव पर हमला किया था हमारे वीर सैनिकों ने हिमालय की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी थी किंतु उसके मान सम्मान पर कोई आंच नही आनी दी थी। इस प्रकार यहाँ हिमालय हमारे देश की आन.बान व शान के साथ-साथ हमारे वीर सैनिकों की वीरता का प्रतीक है।
प्रश्न 3.
इस गीत में धरती को दुलहन क्यों कहा गया है?
उत्तर-
गीत में धरती को दुल्हन इसलिए कहा गया है, क्योंकि सन् 1962 के युद्ध में भारतीय
सैनिकों के बलिदानों से, उनके रक्त से धरती लाल हो गई थी, मानो धरती ने किसी
दुलहन की भाँति लाल पोशाक पहन ली हो अर्थात भारतीय सैनिकों के रक्त से पूरी
युद्धभूमि लाल हो गई थी।
प्रश्न 4.
गीत में ऐसी क्या खास बात होती है कि
वे जीवन भर याद रह जाते हैं?
उत्तर-गीत अपनी कई विशेषताओं के कारण जीवन भर याद रह जाते है| ये विशेषताएँ निम्नलिखित है-
गीत के मार्मिक व ह्र्दयस्पर्शी बोल ।
सजीव व अमिट शैली ।
गीत का जनमानस की भावनाओ के साथ जुडाव ।
संगीत,सुर व ताल का अद्भुत मेल ।
प्रश्न 5.
कवि ने ‘साथियो’ संबोधन का प्रयोग किसके लिए
किया है?
उत्तर-
कवि ने ‘साथियो’ संबोधन का प्रयोग देशवासियों के लिए किया है, जो देश की एकता को
दर्शाता है। देशवासियों का संगठन ही देश को प्रगतिशील, विकासशील तथा
समृद्धशाली बनाता है। देशवासियों का परस्पर साथ ही देश की ‘अनेकता में एकता’ जैसी विशिष्टता को
मजबूत बनाता है।
प्रश्न 6.
कवि ने इस कविता में किस काफ़िले को
आगे बढ़ाते रहने की बात कही है?
उत्तर-
कवि ने इस कविता में देश के लिए न्योछावर होने वाले
अर्थात् देश के मान-सम्मान व रक्षा की खातिर अपने सुखों को त्याग कर, मर मिटने वाले बलिदानियों के काफिले को आगे बढ़ते रहने की
बात कही है। कवि का मानना है कि बलिदान का यह क्रम निरंतर चलते रहना चाहिए क्योंकि
हमारा देश तभी सुरक्षित रह सकता है, जब देशभक्त सैनिको के काफिले
शत्रुओं को परास्त करते हुए आगे बढ़ते रहेंगे।
प्रश्न 7.
इस गीत में ‘सर पर कफ़न बाँधना’ किस ओर संकेत करता है?
उत्तर-
इस गीत में ‘सर पर कफ़न बाँधना’ देश के लिए अपना सर्वस्व अर्थात् संपूर्ण
समर्पण की ओर संकेत करता है। सिर पर कफन बाँधकर चलने वाला व्यक्ति अपने प्राणों से
मोह नहीं करता, बल्कि अपने प्राणों का बलिदान देने के लिए सदैव तैयार रहता है |
प्रश्न 8 -: इस कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में
लिखिए।
उत्तर
प्रस्तुत
कविता उर्दू के प्रसिद्ध कवि कैफ़ी आज़मी द्वारा रचित है। यह गीत 1962 के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित चेतन आनंद की फिल्म हकीकत
के लिए लिखा गया था। इस कविता में कवि ने उन सैनिकों के हृदय की आवाज़ को अभिव्यक्त
किया है, जिन्हें अपने देश के प्रति किए गए हर कार्य, हर कदम, हर बलिदान पर गर्व है। इसलिए इन्हें
प्रत्येक देशवासी से कुछ अपेक्षाएँ भी हैं कि उनके इस संसार से विदा होने के पश्चात
वे देश की आन, बान व शान पर आँच नहीं आने देंगे, बल्कि समय आने पर अपना बलिदान देकर देश की
रक्षा करेंगे।
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