दुःख का अधिकार || Dukh Ka Adhikar || कक्षा 9 || स्पर्श || गद्य || सार, प्रश्न उत्तर || Class 9 || Knowing Hindi


 

दुःख का अधिकार

लेखक परिचय
लेखक- यशपाल
जन्म- 1903

पाठ का सार

दुःख का अधिकार कहानी के माध्यम सेलेखक ने बताया है कि समाज व्यक्ति की वेशभूषा से उसका अधिकार व दर्जा निश्चित करता है|पुत्र की मृत्यु से दुखी खरबूजे बेचने वाली अधेड़ उम्र की महिला(कहानी की मुख्य पात्र) से न तो कोई खरबूजे खरीदता है और न ही उसकी आर्थिक विवशता को समझने का प्रयास करके उसे सांत्वना देने के लिए आगे बढ़ता है अपितु सभी उसके लिए अपशब्दों का प्रयोग करते हैं|तब लेखक पुत्र की मृत्यु से दुखी एक दूसरी अपने पड़ोस में रहने वाली  संभ्रांत महिला से इस ग़रीब महिला/औरत की तुलना करते हुए समाज की दोहरी चाल व भेद-भाव को उजागर करते हैं|

इस प्रकार कहानी के माध्यम से लेखक ने देश या समाज में फैले अंधविश्वासों व ऊँच-नीच के भेद-भाव को बेनकाब करते हुए यह बताने का प्रयास किया है कि दुःख की अनुभूति सभी को समान रूप से होती है |

प्रश्न उत्तर :-

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

प्रश्न 1.
किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें क्या पता चलता है?
उत्तर-
किसी व्यक्ति की पोशाक देखकर हमें उसका दर्जा तथा उसके अधिकारों का पता चलता है।

प्रश्न 2.
खरबूज़े बेचनेवाली स्त्री से कोई खरबूजे क्यों नहीं खरीद रहा था?
उत्तर-
खरबूजे बेचने वाली स्त्री अपने पुत्र की मृत्यु का एक दिन बीते बिना खरबूजे बेचने आई थी। सूतक वाले घर के खरबूजे खाने से लोगों को अपना धर्म भ्रष्ट होने का भय सता रहा था तथा वह घुटनों पर सिर रखकर फफक-फफक कर रो रही थी इसलिए उससे कोई खरबूजे नहीं खरीद रहा था।

प्रश्न 3.
उस स्त्री को देखकर लेखक को कैसा लगा?
उत्तर-
उस स्त्री को फुटपाथ पर रोता देखकर लेखक के मन में व्यथा उठी। वह उसके दुःख को जानने के लिए बेचैन हो उठा।

प्रश्न 4.
उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या था?
उत्तर-
उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण था-साँप द्वारा डॅस लिया जाना।जब वह मुंह-अँधेरे खेत में खरबूजे तोड़ रहा था। उस समय खेत की मेड़ की तरावट में विश्राम करते समय उसका पैर एक साँप पर पड़ गया था।

प्रश्न 5.
बुढ़िया को कोई भी क्यों उधार नहीं देता?
उत्तर-
स्त्री का कमाऊ बेटा मर चुका था। अतः पैसे वापस न मिलने की आशंका के कारण कोई उसे उधार नहीं देता।

 
(
क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1. मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
मनुष्य के जीवन में पोशाक का बहुत अधिक महत्त्व है। पोशाक मनुष्य की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को दर्शाने के साथ-साथ समाज में उसका अधिकार व दर्जा भी सुनिश्चित करती है। पोशाक ही मनुष्य-मनुष्य में भेद कराती है ,उसे आदर का पात्र बनाने के साथ कभी-कभी उसके बंद दरवाजे भी खोल देती  है।

प्रश्न 2. पोशाक हमारे लिए कब बंधन और अड़चन बन जाती है?
उत्तर- जब हम अपने से कम दर्जे या कम पैसे  वाले मनुष्य के साथ बात करना चाहते हैं तो हमारी पोशाक हमें ऐसा नहीं करने देती और हमारे लिए बंधन और अड़चन बन जाती है । हम स्वयं को बड़ा मान बैठते हैं और सामने वाले को छोटा मानकर उसके साथ बैठने ,बात करने  व सहानुभूति तक प्रकट करने मे संकोच का अनुभव करते हैं |

प्रश्न 3. लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं जान पाया?
उत्तर- रोती हुई स्त्री को देखकर लेखक के मन में  व्यथा उठी पर अपनी अच्छी और उच्चकोटि की पोशाक के कारण वह फुटपाथ पर बैठी उस स्त्री के दुःख का कारण नहीं जान पाया |

प्रश्न 4. भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था?

उत्तर- भगवाना शहर के पास अपनी डेढ़ बीघा जमीन पर हरी तरकारियाँ तथा खरबूजे उगाकर तथा उन्हें सब्जी मंडी या फुटपाथ पर बेचकर अपने परिवार का निर्वाह (भरण –पोषण) करता था।

प्रश्न 5. लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूजे बेचने क्यों चल पड़ी?
उत्तर - लड़के का उपचार तथा अंतिम संस्कार करने मे सब खर्च हो गया था | घर मे पोता पोती भूख से परेशान थे ,बहू बुखार से तप रही थी तथा उसके घर में अनाज का एक दाना भी न बचा था | अत: इस प्रकार लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन  खरबूजे बेचने जाना बुढ़िया की विवशता थी।  

प्रश्न 6.
बुढ़िया के दुख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद क्यों आई?
उत्तरलेखक ने बुढ़िया के पुत्र शोक को देखा। उसने अनुभव किया कि इस बेचारी के पास रोने-धोने का भी समय और अधिकार नहीं है। तभी उसकी तुलना में उसे अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद आ गई जो  पुत्र शोक में ढाई महीने तक पलंग से उठ नहीं पाई थी,जिसके सिरहाने दो-दो डॉक्टर खड़े रहते थे तथा शहर भर के समस्त लोग जिसके दुःख से द्रवित हो उठे थे|


) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1.
बाज़ार के लोग खरबूजे बेचनेवाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-

बाजार के लोग खरबूजे बेचने वाली महिला के बारे में तरह-तरह की बातें कहते हुए उसे ताने मार रहे थे और धिक्कार रहे थे।उनमें से कोई कह रहा था कि बुढ़िया कितनी बेहया है जो अपने बेटे के मरने के दिन ही खरबूजे बेचने चली आई। दूसरे सज्जन कह रहे थे कि जैसी नीयत होती है अल्लाह वैसी ही बरकत देता है। सामने फुटपाथ पर दियासलाई से कान खुजलाते हुए एक आदमी कह रहा था, “अरे इन लोगों का क्या है ? ये कमीने लोग रोटी के टुकड़े पर जान देते हैं। इनके लिए बेटा-बेटी खसम-लुगाई, ईमान-धर्म सब रोटी का टुकड़ा है।

प्रश्न 2.
पास पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को क्या पता चला?
उत्तर-

पास पड़ोस की दुकानों से पूछने पर लेखक को पता चला कि बुढ़िया का एकमात्र कमाऊ जवान पुत्र था - भगवाना। वह तेईस साल का था। वह शहर के पास डेढ़ बीघे जमीन पर सब्जियाँ उगाकर बेचा करता था। एक दिन पहले सुबह -सवेरे वह पके हुए खरबूजे तोड़ रहा था कि उसका पैर एक साँप पर पड़ गया। साँप ने उसे डस लिया, जिससे उसकी मौत हो गई। घर का सारा समान बेटे को बचाने तथा उसके मरने के बाद अंतिम संस्कार करने मे खर्च हो गया ।घर मे पोता पोती भूख से परेशान थे ,बहू बुखार से तप रही थी तथा उसके घर में अनाज का एक दाना भी न बचा था अतः आर्थिक विवशता के कारण अगले ही दिन वह खरबूजे बेचने के लिए बाज़ार में आई थी ।

प्रश्न 3.
लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया माँ ने क्या-क्या उपाय किए?
उत्तर-
लड़के को बचाने के लिए बुढ़िया ने वह सब उपाय किए जो उसके द्वारा किए जा सकते थे साँप का विष उतारने के लिए ओझा से झाड फूँक करवाया, नागदेवता की पूजा कराई ,घर का आटा और अनाज भी दान-दक्षिणा  में दे दिया तथा अपने बेटे के पैर पकड़कर विलाप भी किया |

प्रश्न 4.
लेखक ने बुढ़िया के दुख का अंदाज़ा कैसे लगाया?
उत्तर- 
लेखक ने बुढ़िया के दुःख का अंदाजा अपने पड़ोस में रहने वाली संभ्रांत महिला से लगाया जिसका गत वर्ष जवान बेटा मर गया था। बेटे के शोक मे महिला ढाई मास तक पलंग से उठ नहीं पाई थी। उसे अपने पुत्र की याद में मूर्छा आ जाती थी। वह हर पंद्रह मिनट बाद मूर्च्छित हो जाती थी।दो-दो डॉक्टर उसके सिरहाने बैठे रहते थे। उसके माथे पर हमेशा बर्फ की पट्टी रखी रहती थी। पुत्र शोक मनाने के सिवाय उसे कोई होश-हवास नहीं था, न ही कोई जिम्मेदारी थी। उस महिला के दुःख की तुलना करते हुए उसे अंदाजा हुआ कि इस गरीब बुढ़िया का दुःख भी कितना बड़ा होगा। 

प्रश्न 5.
इस पाठ का शीर्षक दुख का अधिकारकहाँ तक सार्थक है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

दुख का अधिकार कहानी  का शीर्षक यह अभिव्यक्त करता है कि दु:ख प्रकट करने का अधिकार भी व्यक्ति की  स्थिति के अनुसार होता है। यद्यपि दु:ख का अधिकार सभी को है तथा सुख-दुःख की अनुभूति सभी को होती है किंतु यह हमारे समाज की विडंबना है कि दुःख के अधिकार को भी वह संपन्न तथा संभ्रांत लोगों तक सीमित कर देती है|समाज के निर्धन वर्ग से वह जैसे दुःख का अधिकार भी छीन लेती है,लोग न केवल उनसे घृणा  करते हैं अपितु तरह- तरह की बातें बनाकर उन पर कटाक्ष भी करते हैंमानो गरीब को दुख मनाने का कोई अधिकार ही न हो,किंतु वही समान दुःख संभ्रांत वर्ग के लिए ज्यादा भारी हो जाता है। उन्हें दु ख व्यक्त करने का अधिकार व समय तो मिलता ही है ,साथ ही साथ उनके दुख को देखकर आसपास के लोग भी केवल दुखी ही नहीं होते हैंबल्कि उनके प्रति सहानुभूति भी व्यक्त करते हैं। इस प्रकार यह शीर्षक पूर्णतया सार्थक है।

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