Class 9 || Raidass ke Pad || रैदास के पद || Jeevan Parichay, Summary, Word Meaning, Vyakhya, Question Answers ||
रैदास
कवि परिचय
कवि – रैदास
जन्म – 1388 (बनारस में)
मृत्यु – 1518
मध्ययुगीन साधकों में रैदास का विशिष्ट स्थान है|कबीर की
तरह रैदास भी संत कोटियों के कवियों में गिने जाते हैं|मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा
जैसे दिखावों में रैदास को जरा भी विश्वास न था|वह व्यक्ति की आंतरिक भावनाओं और
आपसी भाई-चारे को ही सच्चा धर्म मानते थे |
भाषा शैली – रैदास ने अपनी काव्य रचनाओं में सरल व व्यवहारिक ब्रज भाषा का प्रयोग किया है,जिसमें
अवधी,राजस्थानी,खड़ी बोली और उर्दू-फ़ारसी
के शब्दों का भी मिश्रण है | रैदास को उपमा व रूपक अलंकार विशेष प्रिय हैं | कवि
का आत्मनिवेदन, दैन्य भाव और सहज भक्ति पाठक के ह्रदय को उद्वेलित करते हैं |
पाठ का सार
प्रस्तुत पाठ में रैदास के दो पद दिए गए हैं | पहले पद “प्रभु
जी ,तुम चंदन हम पानी” में कवि अपने आराध्य को याद करते हुए उनसे अपनी तुलना करते
हैं | उनका प्रभु बाहर कहीं किसी मंदिर में नहीं विराजते अपितु उनके अंतस में सदा
विद्यमान रहते है | यही नहीं, वह हर हाल में उससे श्रेष्ठ और सर्वगुणसंपन्न हैं, इसलिए तो कवि को उन जैसा बनने की प्रेरणा मिलती
है |
दूसरे पद मे प्रभु की अपार उदारता , कृपा और समदर्शी स्वभाव
का वर्णन है | कवि कहते हैं कि भगवान निम्न कुल के भक्तों को भी सहज भाव से अपनाते
हैं और उन्हें समाज में सम्मानित स्थान दिलवाते हैं |
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा॥
शब्दार्थ -
बास – सुगंध , गंध
समानी – समा जाना (सुगंध का बस
जाना)
घन - बादल
मोरा – मोर पक्षी
चितवत - देखना, निहारना
चकोर - एक पक्षी
बाती - बत्ती, रुई, जिसे तेल में डालकर दीपक जलाते हैं |
जोति - ज्योति
बरै - बढ़ना, जलना
राती - रात्रि
सुहागा - सोने को
शुद्ध करने के लिए प्रयोग में लाया जाने वाला क्षारद्रव्य
दासा - दास, सेवक
व्याख्या - इस पद में कवि अपने प्रभु से कहते
हैं कि उन्हें राम नाम जपने की आदत हो गई है तथा अब वो कैसे छूट सकती है अर्थात्
कवि अपने आराध्य श्रीराम की भक्ति मे इतने लीन हो चुके है कि उन्हें भगवान की
भक्ति से दूर करना असंभव है।
कवि भगवान से कहते है कि हे प्रभु! तुम चंदन हो तो
तुम्हारा भक्त पानी है। जिस प्रकार चंदन
के संपर्क में रहने से पानी की बूँद-बूँद में चंदन की सुगंध समा जाती है उसी
प्रकार प्रभु की भक्ति कवि के अंग-अंग में समा गई है।
हे प्रभु! तुम बादल हो तो तुम्हारा भक्त मोर के समान
है, जिस प्रकार आसमान मे काले बादलों को देखते ही मोर खुशी से नाचने लगता है उसी
प्रकार तुम्हारा भक्त भी तुम्हारे दर्शनों को पाकर प्रसन्न हो जाता है । जिस
प्रकार चकोर पक्षी चंद्रमा को सदैव निहारता रहता है उसी प्रकार भक्त भी तुम्हारा
प्रेम व भक्ति पाने के लिए निरंतर आपको देखता रहता है |
हे
प्रभु !तुम दीपक हो तो तुम्हारा भक्त उसकी बत्ती की तरह है,जो दिन रात तुम्हारी
भक्ति मे जलती रहती है। हे
प्रभु! तुम मोती के समान पवित्र तथा उज्ज्वल हो तो तुम्हारा भक्त उस धागे के समान
है जिसमें मोती पिरोए जाते हैं।
कवि के अनुसार उनका तथा उनके प्रभु का मिलन सोने व सुहागे
के समान है जिस प्रकार सोने मे सुहागा मिला देने से सोना और ज्यादा निखर जाता है
उसी प्रकार से रैदास भी प्रभु के संयोग से और ज्यादा शुद्ध हो जाते हैं । इस प्रकार कवि रैदास
अपने आराध्य के प्रति अपनी भक्ति को दर्शाते हुए कहते हैं कि हे मेरे प्रभु! तुम मेरे स्वामी हो और मैं आपका सेवक हूँ।
ऐसी लाल तुझ बिनु
कउनु करै।
गरीब निवाजु गुसईआ
मेरा माथै छत्रु धरै।।
जाकी छोति जगत कउ लागै
ता पर तुहीं ढ़रै।
नीचहु ऊच करै मेरा
गोबिंदु काहू ते न डरै॥
नामदेव कबीरु
तिलोचनु सधना सैनु तरै।
कहि रविदासु सुनहु
रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै॥
शब्दार्थ -
लाल - स्वामी
कउनु - कौन
गरीब निवाजु -
दीन-दुखियों पर दया करने वाला
गुसईआ - स्वामी, गुसाईं
माथै छत्रु धरै -
मस्तक पर मुकुट धारण करने वाला
छोति - छुआछूत
जगत कउ लागै -
संसार के लोगों को लगती है
ता पर तुहीं ढरै -
उन पर द्रवित होता है
नीचहु ऊच करै -
नीच को भी ऊँची पदवी प्रदान करता है|
नामदेव -
महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध संत, इन्होंने मराठी और हिंदी दोनों भाषाओं में रचना की है|
तिलोचनु
(त्रिलोचन) - एक प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य, जो ज्ञानदेव और नामदेव के गुरु थे|
सधना - एक उच्च
कोटि के संत व नामदेव के समकालीन माने जाते हैं जोकि पेशे से कसाई थे |
सैनु - ये भी एक
प्रसिद्ध संत हैं जो कि पेशे से बांधवगढ़ बघेलखंड राजघराने
के नाई थे |
हरिजीउ - हरि जी
से
सभै सरै - सब कुछ संभव हो जाता है
व्याख्या - इस पद में कवि अपने आराध्य की महिमा
गुणगान करते हुए कहते हैं कि हे प्रभु!आपके बिना कौन ऐसी कृपा करता है |आप गरीबों
और दीन-दुःखियों पर दया करने वाले हैं तथा आपने ही
मुझ जैसे अछूत व निम्न वर्ग के व्यक्ति के माथे पर राजाओं के समान मुकुट रखा | जहाँ समाज के लोग
निम्न जाति के लोगों द्वारा छुआ जाना भी अच्छा नहीं मानते ,उनको हीन दृष्टि से
देखते है वहाँ उनके प्रभु उन पर द्रवित हुए तथा उन्हें महान संत के जैसा सम्मान भी समाज मे
दिलवाया अर्थात् उनके प्रभु सबको समान दृष्टि से देखते हैं तथा किसी के साथ कोई
भेदभाव न रखते हुए सबके दुःख-दर्द दूर करते हैं ।
कवि कहते हैं कि उनके
भगवान किसी से डरते नहीं है तथा निम्न
जाति मे उत्पन्न होने वालों को भी समाज मे ऊँचा स्थान देने मे सक्षम है । निम्न
कुल में उत्पन्न नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना और सैनु जैसे संत भी उनकी कृपा से ही इस
संसार से तरने मे सफल हो सके अर्थात् ज्ञान प्राप्त कर सके | कवि कहते हैं कि हे!सज्जन
व्यक्तियों तुम सब सुनो कि उन प्रभु के द्वारा इस संसार में सब कुछ संभव
है अर्थात् कोई ऐसा कार्य नहीं जो वो न कर सकें |
प्रश्न अभ्यास
1. निम्नलिखित
प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रश्न 1 -
पहले पद में भगवान
और भक्त की जिन-जिन चीजों से तुलना की गई है, उनका उल्लेख
कीजिए।
उत्तर – पहले पद में भगवान और भक्त की निम्नलिखित चीजों से तुलना की गई है-
·
भगवान की चंदन से और भक्त की पानी से ।
·
भगवान की घन बन से और भक्त की मोर से ।
·
भगवान की चाँद से और भक्त की चकोर से |
·
भगवान की दीपक से और भक्त की बाती से |
·
भगवान की मोती से और भक्त की धागे से ।
·
भगवान की सुहागे से और भक्त को सोने से।
प्रश्न 2 -
पहले पद की
प्रत्येक पंक्ति के अंत में तुकांत शब्दों के प्रयोग से नाद-सौंदर्य आ गया है, जैसे: पानी, समानी, आदि। इस पद में
अन्य तुकांत शब्द छाँटकर लिखिए।
मोरा - चकोरा
बाती - राती
धागा - सुहागा
दासा - रैदासा
प्रश्न 3 -
पहले पद में कुछ
शब्द अर्थ की दृष्टि से परस्पर संबद्ध हैं। ऐसे शब्दों को छाँटकर लिखिए: उदाहरण:
दीपक – बाती
उत्तर - पहले पद में कुछ
शब्द अर्थ की दृष्टि से परस्पर संबद्ध हैं जैसे : घन-बन – मोर
मोती – धागा
सोनहि – सुहागा
स्वामी - दास
चंद - चकोर
उत्तर - दूसरे पद में कवि ने अपने प्रभु को ‘गरीब निवाजु’ कहा है क्योंकि उनके प्रभु गरीबों और दीन-दुःखियों पर दया करने वाले हैं |कवि की दृष्टि मे यह उनके प्रभु की उदारता ,दीन दयालुता तथा अपार कृपा का ही परिणाम है कि उनके जैसे अछूत माने जाने वाले व्यक्ति को भी समाज द्वारा संत की उपाधि देकर महान संतों के जैसा सम्मान दिया गया |
प्रश्न 5 - दूसरे पद की ‘जाकी छोती जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढ़रै' इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर -इसका आशय है कि जहाँ समाज के लोग निम्न जाति के लोगों द्वारा छुआ जाना भी अच्छा नहीं मानते ,उनको हीन दृष्टि से देखते है वहाँ उनके प्रभु उन पर द्रवित हुए तथा उन्हें महान संत के जैसा सम्मान भी समाज मे दिलवाया अर्थात् उनके प्रभु सबको समान दृष्टि से देखते हैं तथा किसी के साथ कोई भेदभाव न रखते हुए सबके दुःख-दर्द दूर करते हैं ।
प्रश्न 6 - रैदास ने अपने स्वामी को किन किन नामों से पुकारा है?
उत्तर - रैदास ने अपने स्वामी को लाल ,गुसईआ (गोसाई) और गरीब निवाजु (गरीबों का उद्धार करने वाला), गोबिंदु आदि नामो से पुकारा है।
चंद - चाँद
बाती - बत्ती
जोति - ज्योति
बरै - जलना
राती - रात
छत्रु - छाता
छोति - छूने
तुहीं - तुम्हीं
गुसईआ - गोसाई
HARSH LATA ATRI
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