Raheem Ke Dohe ||रहीम के दोहे || Class 9 || कवि परिचय, पाठ प्रवेश, पद, शब्दार्थ, व्याख्या व प्रश्न अभ्यास ||

 स्पर्श
काव्य खंड
 कक्षा 9

रहीम

कवि परिचय

कवि - रहीम

जन्म – 1556 लाहौर

इनका पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था  ये मध्ययुगीन दरबारी संस्कृति के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं| अकबर के दरबार में हिंदी कवियों में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान था | रहीम अकबर के नवरत्नों में से एक थे|

रहीम के काव्य का मुख्य विषय श्रृंगार, नीति व भक्ति है |इनके दोहे सर्वसाधारण को आसानी से याद हो जाते हैं|नीतिपरक दोहे जिनको दैनिक जीवन के दृष्टांत देकर कवि ने सहज, सरल व बोधगम्य बना दिया है, अत्यधिक प्रचलित हैं

रचनाएँ – रहीम सतसई, श्रृंगार सतसई, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, रहीम रत्नावली,भाषिक भेदवर्णन आदि इनकी प्रमुख कृतियाँ रहीम ग्रंथावली में समाहित हैं |


पाठ प्रवेश -

प्रस्तुत पाठ में रहीम के नीतिपरक दोहे दिए गए हैं ये दोहे जहाँ एक और पाठक को ओरों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, इसकी सीख देते हैं, वहीं मानव को करणीय व अकरणीय आचरण की भी नसीहत देते हैं इन दोहों को एक बार पढ़ लेने के बाद भूल पाना संभव नहीं है और हमारे जीवन की विभिन्न स्थितियों का सामना होते ही इनका किसी को भी याद आना लाज़िमी है, जिनका इनमें चित्रण है।


 पद 

(1)

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥
शब्दार्थ -
चटकाय - झटके से
परि जाय - पड़ जाती है
व्याख्या - रहीम जी कहते हैं कि प्रेम का रिश्ता धागे के समान नाजुक होता है इसलिए कभी भी झटके से नहीं तोड़ना चाहिए बल्कि उसकी हिफ़ाज़त करनी चाहिए। जिस प्रकार धागा टूटने के बाद पुन: पहले जैसा नहीं हो सकता,उसमें गाँठ पड़ जाती हे। ठीक उसी प्रकार यदि प्रेम का रिश्ता टूट जाता है तो फिर उस रिश्ते को दोबारा पहले की तरह जोड़ा नहीं जा सकता ,उस रिश्ते में संदेह तथा अविश्वास रूपी गाँठ पड़ जाती है


(2)

रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहै कोय॥

शब्दार्थ -
निज - अपने
बिथा - दर्द
अठिलैहैं - मज़ाक उड़ाना
बाँटि - बाँटना
कोय – कोई

व्याख्या - रहीम जी कहते हैं कि अपने मन का दुःख-दर्द अपने मन में छिपा कर ही रखना चाहिए, दूसरों को प्रकट नहीं करना चाहिए क्योंकि कोई भी आपके दुःख-दर्द को बाँटता नहीं है अपितु (वे लोग) उसका मज़ाक ही उड़ाते हैं |



(3)

एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥

शब्दार्थ -
मूलहिं - जड़ में
सींचिबो - सिंचाई करना
अघाय - तृप्त

व्याख्या - रहीम जी कहते हैं कि एक बार में केवल एक कार्य ही करना चाहिए। क्योंकि एक काम के पूरा होने से कई और काम अपने आप पूरे हो जाते हैं। यदि एक ही साथ आप कई लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करेंगे तो कुछ भी हाथ नहीं आता। रहीम कहते हैं कि यह वैसे ही है जैसे किसी पौधे में फूल और फल तभी आते हैं जब उस पौधे की जड़ में उसे तृप्त कर देने जितना पानी डाला जाता है। अर्थात जब पौधे में पर्याप्त पानी डाला जाएगा तभी पौधे में फल और फूल आएँगे।


(4)

चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस॥

शब्दार्थ -
अवध-नरेस - अवध के राजा

बिपदा - विपत्ति

व्याख्या - रहीम कहते हैं कि चित्रकूट के घने जंगलों में अयोध्या के राजा राम आकर रहे थे जब उन्हें 14 वर्षों का वनवास प्राप्त हुआ था अर्थात् जब उनके ऊपर संकट आया था। इस स्थान की याद दुःख में ही आती है, जिस पर भी विपत्ति आती है वह शांति पाने के लिए इसी प्रदेश में खिंचा चला आता है।ऐसा लगता है कि मानो चित्रकूट मुसीबत से सताए लोगों की शरण-स्थली है |


(5)

दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं॥

शब्दार्थ -
अरथ - अर्थ
आखर - अक्षर, शब्द
थोरे - थोड़े, कम

व्याख्या - रहीम जी का कहना है कि दोहे में भले ही कम शब्द हैं, परंतु उनके अर्थ बड़े ही गहरे और बहुत कुछ कह देने में समर्थ हैं| ठीक उसी प्रकार जैसे कोई नट अपने करतब के दौरान अपने बड़े से शरीर को सिमटा कर कुंडली मार लेने के बाद छोटा कर लेता है और फिर अचानक ऊपर चढ़ जाता है| अर्थात् किसी के आकर को देख कर उसकी प्रतिभा का अंदाज़ा नहीं लगाना चाहिए|


(6)

धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥

शब्दार्थ -
धनि - धन्य
पंक - कीचड़
लघु - छोटा
उदधि - सागर
पिआसो - प्यासा

व्याख्या  - रहीम जी कहते हैं कि कीचड़ का वह थोडा सा पानी भी धन्य है क्योंकि उस पानी से कितने ही छोटे-छोटे जीवों की प्यास बुझती है। लेकिन वह सागर का जल बहुत अधिक मात्रा में होते हुए भी व्यर्थ है क्योंकि उस जल से कोई भी जीव अपनी प्यास नहीं बुझा पाता। अर्थात् बड़ा वही है जो दूसरे की सहायता करे या दूसरे के काम आ सके।


(7)

नाद रीझि तन देत मृग, नर धन देत समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत॥

शब्दार्थ -
नाद - संगीत की ध्वनि
रीझि - मोहित हो कर, खुश हो कर

व्याख्या - रहीम जी कहते हैं कि जिस प्रकार हिरण संगीत की ध्वनि पर रीझकर/ प्रसन्न होकर अपना शरीर न्योछावर कर देता है अर्थात अपने प्राण भी दे देता है। इसी तरह से कुछ लोग दूसरे के प्रेम से खुश होकर अपना धन इत्यादि सब कुछ उन्हें दे देते हैं। लेकिन रहीम कहते हैं कि वे कुछ लोग पशु से भी बदतर होते हैं जो दूसरों की कला से खुश तो हो जाते हैं किंतु देते कुछ नहीं |


(8)

बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय॥

शब्दार्थ -
बिगरी - बिगड़ी
फाटे दूध - फटा हुआ दूध
मथे - मथना

व्याख्या - रहीम जी कहते हैं कि कोई बात जब एक बार बिग़ड़ जाती है तो लाख कोशिश करने के बावजूद उसे ठीक नहीं किया जा सकता। जैसे जब दूध एक बार फट जाए तो फिर उसको मथने से मक्खन नहीं निकलता। तात्पर्य है कि हमें किसी भी बात को करने से पहले बहुत बार सोचना चाहिए क्योंकि यदि एक बार कोई बात बिगड़ जाए तो उसे सुलझाना बहुत मुश्किल हो जाता है।


(9)

रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि॥

शब्दार्थ -
बड़ेन - बड़ा
लघु - छोटा
आवे - आना

तरवारि- तलवार

व्याख्या - रहीम जी कहते हैं कि किसी बड़ी चीज को देखकर किसी छोटी चीज की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए अर्थात बड़ी चीज़ के होने पर किसी छोटी चीज़ को कम नहीं समझना चाहिए। क्योंकि जहाँ छोटी चीज की जरूरत होती है वहाँ पर बड़ी चीज बेकार हो जाती है। जैसे जहाँ सुई की जरूरत होती है वहाँ तलवार का कोई काम नहीं होता।


(10)
रहिमन निज संपति बिन, कौ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय॥

शब्दार्थ -
निज - अपना
बिपति - विपत्ति
सहाय - सहायता
जलज - कमल
रवि - सूर्य

व्याख्या - रहीम जी कहते हैं कि जब आपके पास अपना धन नहीं होता है तो कोई भी विपत्ति में आपकी सहायता नहीं करता। वैसे ही जैसे पानी के बिना कमल को सूर्य बचा नही सकता अर्थात् आपका धन ही आपको आपकी मुसीबतों से निकाल सकता है क्योंकि मुसीबत में कोई किसी का साथ नहीं देता।
 

(11)

रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥

शब्दार्थ -
बिनु - बगैर, बिना
सून - असंभव

व्याख्या - पानी की महिमा का वर्णन करते हुए रहीम जी कहते हैं कि जीवन में पानी का बहुत महत्त्व है, इसे बनाए रखना चाहिए। यदि पानी समाप्त हो गया तो न तो मोती का कोई महत्त्व है, न मनुष्य का और न आटे का। पानी अर्थात चमक के बिना मोती बेकार है। पानी अर्थात सम्मान के बिना मनुष्य का जीवन व्यर्थ है और जल के बिना रोटी नहीं बन सकती अर्थात् चून का उपयोग नहीं हो सकता है।


     प्रश्न अभ्यास

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1 - प्रेम का धागा टूटने पर पहले की भाँति क्यों नहीं हो पाता?

उत्तर - जब कोई धागा टूट जाता है तो उस टूटे हुए धागे को जोड़ने के लिए उसमें गाँठ लगानी पड़ती है। जिसके कारण वह पहले की तरह नहीं हो पाता, इसी तरह से जब कोई प्रेम का धागा टूट जाता है तब उस प्रेम के धागे को फिर जोड़कर पहले की तरह नहीं बनाया जा सकता क्योंकि उस रिश्ते मे संदेह,अविश्वास व कडवाहट की दरार पड़ जाती है |


प्रश्न 2 - हमें अपना दुख दूसरों पर क्यों नहीं प्रकट करना चाहिए? अपने मन की व्यथा दूसरों से कहने पर उनका व्यवहार कैसा हो जाता है?

उत्तर - जब हम अपना दुख दूसरों को बताते हैं तो दूसरे हमारा दुख बाँटने की बजाय उसका मजाक उड़ाते हैं। इसलिए हमें अपना दुख दूसरों को प्रकट नहीं करना चाहिए। अपने मन की व्यथा दूसरों से कहने पर उनका व्यवहार हमारे प्रति अच्छा नहीं रहता।

प्रश्न 3 - रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य क्यों कहा है?

उत्तर - पंक में जल की कम मात्रा होती है फिर भी इस जल से कई जीवों की प्यास बुझती है। लेकिन सागर का जल बहुत अधिक मात्रा में होने के बावजूद भी किसी की प्यास नहीं बुझा पाता। इसलिए रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य कहा है। क्योंकि धन्य वही होता है जो दूसरों की सहायता करता है।

प्रश्न 4 - एक को साधने से सब कैसे सध जाता है?

उत्तर - जिस तरह से जड़ को सींचने से ही पेड़ में फूल और फल लगते हैं उसी तरह से एक को साधने से सब सध जाता है। अर्थात एक काम के पूरा होने से अन्य कार्यों के लिए रास्ता अपने आप खुल जाता है। अतः हमें एक साथ बहुत कार्यों को न करके किसी एक कार्य में ही अपना पूरा ध्यान लगाना चाहिए।


प्रश्न 5 - जलहीन कमल की रक्षा सूर्य भी क्यों नहीं कर पाता?

उत्तर – कमल की संपत्ति व उसका स्रोत ही जल है तथा जल में ही वह पैदा होता है इसलिए जलहीन कमल की रक्षा सूर्य भी नहीं कर पाता क्योंकि जल के बिना कमल को जरूरी पोषण नहीं मिलता।कवि ने जल को ही कमल की संपत्ति माना है।


प्रश्न 6 - अवध नरेश को चित्रकूट क्यों जाना पड़ा?
उत्तर – चित्रकूट को कवि ने विपत्ति में पड़े हुए जनों की शरण-स्थली कहा है तथा अवध नरेश श्रीराम को जब 14 वर्षो का वनवास मिला था तो वे उनके विपत्ति के दिन थे इसलिए अवध नरेश को चित्रकूट जाना पड़ा |


प्रश्न 7 - ‘नटकिस कला में सिद्ध होने के कारण ऊपर चढ़ जाता है?
उत्तर - नट कुंडली मारने की कला में निपुण होता है। वह कुंडली मारकर अपने शरीर को किसी भी मुद्रा में मोड़ सकता है अथवा किसी भी आकार में समेट सकता है। इसी कारण वह आसानी से ऊपर चढ़ जाता है।


प्रश्न 8 - ‘मोती, मानुष, चूनके संदर्भ में पानी के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – कवि के अनुसार मनुष्य को सदैव पानी को बचाकर रखना चाहिए क्योंकि यदि मोती में पानी नहीं है यानी चमक नहीं है तो उसका कोई मूल्य नहीं रह जाता, पानी से ही वह मूल्यवान बनता है|
मानुष के संदर्भ में पानी का अर्थ है उसका स्वाभिमान ,जिसके बिना उसका कोई मूल्य नहीं होता|    
चून के यहाँ दो अर्थ हैं – आटा व चूना| बिना पानी के आटे कों नहीं गूँधा जा सकता अर्थात् रोटी नहीं बनाई जा सकती और इसी प्रकार पानी में बुझाए बिना चूने को उपयोग में नहीं लाया जा सकता|    अत: इस प्रकार मोती,मानुष व चून के संदर्भ में पानी का अत्यधिक महत्त्व है |

                

 





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