लघु कथा || Class 10th || Hindi || Rachnatmk lekhan || रचनात्मक लेखन ||

 
लघु कथा
 
लघु कथा साहित्य की प्रचलित और लोकप्रिय विधा है।

लघु का अर्थ है- 'संक्षिप्त', परंतु संक्षिप्त होने के बावजूद भी पाठकों पर इसका प्रभाव दीर्घ काल तक बना रहता है। इस प्रकार लघुकथा 'गागर में सागर' भरने वाली अनुपम विधा है।

लघु कथाएँ सीमित शब्दों में बहुत कुछ कह जाती हैं। पाठकों के अंतर्मन तक पहुँचकर अपना संदेश उन तक पहुँचाना ही इनका मुख्य उद्देश्य है। अतः लघु कथा का वास्तविक उद्देश्य तभी सार्थक है, जब पाठक प्रभावित तथा संतुष्ट हो जाएँ।

 
लघु कथा लिखते समय ध्यान देने योग्य बातें:-
1. कथा संक्षिप्त और सारगर्भित होनी चाहिए:
लघुकथा नाम से ही स्पष्ट है कि यह एक छोटी कहानी होती है। इसे 100 से 120 शब्दों के भीतर सीमित रखना चाहिए।
2. एक मुख्य विचार या संदेश हो:
कहानी का कोई स्पष्ट उद्देश्य होना चाहिए – जैसे नैतिक शिक्षा, सामाजिक सन्देश, या मानवीय भावनाओं को उजागर करना।
3. पात्रों की संख्या सीमित हो:
लघुकथा में अधिक पात्र नहीं होने चाहिए। 1 से 3 पात्र पर्याप्त होते हैं।
4. आरंभ, मध्य और अंत स्पष्ट हो:
कहानी का आरंभ रोचक होना चाहिए, मध्य में कोई संघर्ष या मोड़ आना चाहिए और अंत में कोई प्रभावशाली निष्कर्ष या संदेश निकलना चाहिए।
5. भाषा सरल और प्रभावशाली हो:
छात्रों को सरल हिंदी का प्रयोग करना चाहिए, जिसमें मुहावरे और लोकोक्तियों का सीमित लेकिन सटीक प्रयोग किया जाए।
6. संवाद (संभाषण) का उपयोग:
अगर उपयुक्त हो, तो पात्रों के बीच छोटे संवाद कहानी को रोचक बना सकते हैं।
7. शीर्षक उपयुक्त और आकर्षक हो:
शीर्षक कहानी के भाव को दर्शाना चाहिए और पाठक की जिज्ञासा को बढ़ाए।

उदाहरण:

®   इच्छाशक्ति की जीत
सीमा एक गरीब किसान की बेटी थी। उसके गाँव में सिर्फ पाँचवीं तक ही स्कूल था। लेकिन उसका सपना था—

शहर  जाकर पढ़ाई कर डॉक्टर बनना।लोग हँसते थे, कहते, “अंधे के सपने क्या देखे?” लेकिन सीमा ने हार नहीं 

मानी। दिन में खेतों में माँ-बाप का हाथ बंटाती और रात में लालटेन की रोशनी में पढ़ती। एक दिन गाँव के एक 

अध्यापक ने उसकी लगन देखी और खुद ही मदद का हाथ बढ़ाया। उसने सीमा का दाखिला शहर के स्कूल में 

करवाया। सीमा ने दिन-रात एक करते हुए पढ़ाई की और डॉक्टर बनकर जब गाँव लौटीं, तो सबकी आँखें खुली की 

खुली रह गईं। वह मुस्कराकर बोली, “किसी ने उचित ही कहा है कि जहां चाह वहां राह।

 
®   अगर मैं समाचार-पत्र होता
 
अगर मैं समाचार-पत्र होता, तो हर सुबह लोगों के हाथों में पहुंचकर उन्हें देश-दुनिया की खबरें देता। मैं रात 

भर जागता, अपने भीतर नई-नई जानकारियाँ समेटता और सुबह-सुबह घर-घर जाकर सबको जागरूक करता।मैं झूठ 

का पर्दाफाश करता , समस्याओं की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट करता और उन्हें सोचने पर मजबूर करता।कभी मैं 

खुशी की खबरें लाता, तो कभी दुःख की घटनाओं से मन भारी कर देता। लेकिन मेरा उद्देश्य सदा एक ही रहता—

सच्चाई को सामने लाना। मेरे पन्नों पर राजनीति, खेल, मनोरंजन, शिक्षा, मौसम और विज्ञान की बातें होतीं। विद्यार्थी 

मुझसे ज्ञान प्राप्त करते,  व्यापारी बाजार के समाचार पढ़ते और बुजुर्ग मेरे साथ अपना समय बिताते। लेकिन कभी-

कभी मुझे दुःख भी होता, जब मेरे पन्नों का उपयोग अफवाहें फैलाने या झूठी खबरें छापने में किया जाता। तब मैं 

अपने अस्तित्व पर प्रश्न उठाता—क्या मैं सही दिशा में हूँअगर मैं समाचार-पत्र होता, तो मैं हमेशा निष्पक्ष, सच्चा 

और जनहितकारी बनने की कोशिश करता। मैं समाज का दर्पण बनकर, हर व्यक्ति को उसके कर्तव्यों और अधिकारों 

का स्मरण कराता। हर हाल में ईमानदारी से अपना फर्ज़ निभाता। मैं न तो दाल में काला होने देता, न ही किसी को 

धोखा देने का मौका देता। मैं हर दिन सिर उठाकर समाज को सच्चाई का आइना दिखाता।

 

 

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