डायरी का एक पन्ना || सार, लेखक परिचय, प्रश्न उत्तर || Diary Ka Ek Panna || कक्षा 10 || स्पर्श || गद्य || Class 10 ||

 


लेखक परिचय
लेखक – सीताराम सेकसरिया
जन्म – 1892
मृत्यु – 1982
सीताराम सेकसरिया अनेक साहित्यिक,सांस्कृतिक और नारी शिक्षण संस्थाओं के प्रेरक,संस्थापक व संचालक रहे | महात्मा गांधी के आह्वान पर स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़ चढकर भाग लिया| स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जेल यात्रा भी की तथा कुछ साल तक आज़ाद हिंद फ़ौज के मंत्री भी रहे| 1962 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से भी सम्मानित किया|
स्मृतिकरण, मन की बात ,बीता युग, नई याद और दो भागों में एक कार्यकर्ता की डायरी उनकी उल्लेखनीय कृतियाँ हैं|

पाठ प्रवेश

अंग्रेजों से देश को मुक्ति दिलाने के लिए महात्मा गांधी ने सत्याग्रह आंदोलन छेड़ा था| इस आंदोलन ने जनता में आज़ादी की अलख जगाई| देश-भर से ऐसे लाखों लोग सामने आए जो इस महासंग्राम में अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर थे| 26 जनवरी1930 को गुलाम भारत में पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था| यह सिलसिला आगे भी जारी रहा| आज़ादी के ढाई साल बाद ,1950 में यही दिन हमारे अपने गणतंत्र के लागू होने का दिन भी बना|
प्रस्तुत पाठ में लेखक सीताराम सेकसरिया आज़ादी की कामना करने वाले उन्हीं अनंत लोगों में से एक थे| वह प्रतिदिन जो भी देखते,सुनते और महसूस करते थे,उसे अपनी निजी डायरी में दर्ज कर लेते थे| यह क्रम कई वर्षों तक चला| इस पाठ में उनकी डायरी का 26जनवरी का लेखाजोखा है|

पाठ का सार

प्रस्तुत पाठ सीताराम सेकसरिया द्वारा लिखित संस्मरण हमें 1930-31 में देश में चल रही राजनैतिक गतिविधियों के बारे में बताता है| इस पाठ में लेखक की निजी डायरी में दर्ज 26जनवरी1931 की घटनाओं का क्रमानुसार वर्णन है, जो यह दर्शाता है कि बंगाल के लोगों ने परतंत्र भारत के दूसरे स्वतंत्रता संग्राम मे अपूर्व जोश के साथ बढ़चढ़कर भाग लिया था| इससे पहले यह समझा जाता रहा था कि बंगाल के लोग स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार(इच्छुक) नहीं हैं किंतु 26 जनवरी1931 की घटनाओं ने यह साबित कर दिया कि देश की स्वतंत्रता के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं तथा किसी से पीछे नहीं हैं| पुलिस की बर्बरता व कठोरता के बावजूद भी कानून भंग करते हुए हजारों की संख्या में प्रत्येक वर्ग के लोगों ने जुलूस में हिस्सा लिया,मोनुमेंट पर निर्धारित समय यानी चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडा फहराया और स्वाधीनता की प्रतिज्ञा पढ़ी|

इस प्रकार यह पाठ हमारे क्रांतिकारियों की कुर्बानियों को तो याद दिलाता ही है साथ ही साथ यह भी सीख देता है कि यदि एक समाज या सभी लोग एक साथ सच्चे मन से कोई कार्य करने के लिए दृढ़ संकल्प हो तो ऐसा कोई भी काम नहीं है जो वो नहीं कर सकते।

प्रश्न उत्तर :-

मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए –
प्रश्न1) कलकत्तावासियों के लिए 26 जनवरी का दिन क्यों महत्त्वपूर्ण था ?
उत्तर) 26 जनवरी 1931 का दिन कलकत्तावासियों के लिए इसलिए महत्त्वपूर्ण था क्योंकि 1930 में गुलाम भारत में पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था| इस वर्ष उसकी पुनरावृत्ति थी, इसलिए यह दिन उनके लिए महत्त्वपूर्ण था |
प्रश्न2) सुभाष बाबू के जुलूस का भार किस पर था ?
उत्तर) सुभाष बाबू के जुलूस का भार पूर्णोदास पर था|उन्होंने इस जुलूस का पूरा प्रबंध किया था |
प्रश्न3) विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू के झंडा गाड़ने पर क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर) विद्यार्थी संघ के मंत्री अविनाश बाबू को झंडा गाड़ने पर पकड़ लिया गया तथा अन्य लोगों को मारा और वहाँ से हटा दिया |
प्रश्न4) लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर राष्ट्रीय झंडा फहराकर किस बात का संकेत देना चाहते थे ?
उत्तर) लोग अपने-अपने मकानों व सार्वजनिक स्थलों पर झंडा फहराकर इस बात का संकेत देना चाहते थे कि वे अंग्रेज़ी सरकार के अत्याचारों को अब और सहन नहीं करेंगे तथा अपने देश को स्वतंत्र कराने के लिए दृढ़ संकल्प हैं |
प्रश्न 5) पुलिस ने बड़े-बड़े पार्को तथा मैदानों को क्यों घेर लिया था ?
उत्तर) पुलिस ने बड़े-बड़े पार्को तथा मैदानों को इसलिए घेर लिया था क्योंकि पुलिस नहीं चाहती थी कि लोग एकत्र होकर पार्को तथा मैदानों में सभा करें तथा राष्ट्रीय ध्वज फहराएँ।

लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25 -30 शब्दों में ) लिखिए - प्रश्न 1) 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए क्या क्या तैयारियाँ की गईं ? उत्तर: 26 जनवरी 1931 के दिन को अमर बनाने के लिए कलकत्ता के प्रत्येक भाग व अधिकांश मकानों पर झंड़े लगाए गए थे| लोगों ने अपने घरों को खूब सजाया था, कई मकान तो इतने सजाए गए थे कि ऐसा लग रहा था कि मानो स्वतंत्रता मिल गई हो| केवल प्रचार पर ही दो हज़ार रूपए खर्च किये गए थे तथा कार्यकर्ताओं को उनका कार्य घर - घर जाकर भी समझाया गया था|
मोनुमेंट के नीचे सभा करने तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ने का आयोजन भी इस दिन को अमर बनाने के लिए किया गया था।
प्रश्न 2) 'आज जो बात थी ,वह निराली थी '- किस बात से पता चल रहा था कि आज का दिन अपने आप में निराला है ? स्पष्ट कीजिए। उत्तर : आज जो बात थी वह निराली थी क्योंकि इस दिन (26 जनवरी1931)को कलकत्तावासी पूरे उत्साह के साथ यादगार बनाने की तैयारी में लगे थे।कलकत्ता मे सभी जगह झंडे लहरा रहे थे।अंग्रेज़ी सरकार के कड़े प्रशासन प्रबंधों व लाठी खाने के बाद भी हजारों की संख्या में लोग जुलूस में भाग ले रहे थे| सरकार द्वारा सभा भंग करने की कोशिशों के बावजूद लोग जुलूस में भाग लेने के लिए निर्धारित समय व स्थान पर एकत्रित होने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे थे| स्त्रियों व विद्यार्थियों ने भी आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था| इस प्रकार 26 जनवरी 1931 के दिन अंग्रेज़ी सरकार को खुली चुनौती देकर कलकत्तावासियों ने देश-प्रेम व एकता का अपूर्व प्रदर्शन किया |
प्रश्न 3) पुलिस कमिश्नर के नोटिस और कौंसिल के नोटिस में क्या अंतर है ? उत्तर : पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकाला था कि अमुक - अमुक धारा के अनुसार कोई सभा नहीं हो सकती। यदि कोई सभा में जाता है तो उसे दोषी समझा जाएगा। कौंसिल की ओर से नोटिस निकला था कि मोनुमेंट के नीचे ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर झंडा फहराया जाएगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। सर्वसाधारण की उपस्थिति होनी चाहिए। इस तरह दोनों नोटिस एक दूसरे के विरुद्ध थे।
प्रश्न 4) धर्मतल्ले के मोड़ पर आकर जुलूस क्यों टूट गया ? उत्तर : जब सुभाष बाबू को गिरफ्तार करके पुलिस ले गई तो कुछ स्त्रियाँ जुलूस बना कर जेल की ओर चल पड़ी, कुछ को पुलिस की लाठियों ने घायल कर दिया ,कुछ को पुलिस गिरफ्तार करके ले गई और बची हुई कुछ स्त्रियाँ वहीँ धर्मतल्ले के मोड़ पर ही बैठ गई थीं जिन्हें बाद में उन्हें पुलिस पकड़ कर ले गई। इस प्रकार धर्मतल्ले के मोड़ पर आ कर जुलूस टूट गया।
प्रश्न 5) डॉ. दास गुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख रेख तो कर ही रहे थे ,उनके फोटो भी उतरवा रहे थे। उन लोगों के फोटो खिचवाने की क्या वजह हो सकती थी ? स्पष्ट कीजिए। उत्तर : डॉ. दास गुप्ता जुलूस में घायल लोगों की देख रेख तो कर ही रहे थे ,उनके फोटो भी उतरवा रहे थे। उन लोगों के फोटो खिचवाने की दो वजह हो सकती थी- एक तो यह कि अंग्रेजों के अत्याचारों तथा कलकत्तावासियो द्वारा किए जानेवाले स्वतंत्रता संघर्श से समस्त देशवासियों को अवगत कराया जा सके जिससे पूरा देश अंग्रेज़ प्रशासकों के जुल्मों का विरोध करके उन्हें देश से बाहर निकालने के लिए तैयार हो जाए।
दूसरी वजह यह हो सकती है कि बंगाल या कलकत्ता पर जो कलंक था कि वहाँ स्वतंत्रता के लिए कोई काम नहीं हो रहा है, इस कलंक को भी काफी हद तक धोया जा सकता था और साबित किया जा सकता था कि वहाँ भी बहुत काम हो रहा है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50 -60 शब्दों में ) दीजिए -
प्रश्न 1) सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की क्या भूमिका थी ?
उत्तर : सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्रियों ने अलग अलग जगहों से अपना जुलूस निकालने और सही जगह पर निर्धारित समय पर पहुँचने की भरसक कोशिश कीं। स्त्रियों ने मोनुमेंट की सीढ़ियों पर चढ़कर झंडा फहराया तथा घोषणा-पत्र पढ़ा। धर्मतल्ले के मोड़ पर वे धरने के लिए बैठीं,पुलिस के अत्याचारों का सामना किया तथा विमल प्रतिभा,जानकी देवी और मदालसा आदि ने जुलूस का सफ़ल नेतृत्व भी किया| इस प्रकार सुभाष बाबू के जुलूस में स्त्री समाज की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका थी।
प्रश्न 2) जुलूस के लालबाज़ार आने पर लोगों की क्या दशा हुई ?
उत्तर : जुलूस के लाल बाजार आने पर पुलिस ने सुभाष बाबू को गिरफ्तार करके लॉकअप में भेज दिया,भीड़ पर डंडे चलाए तथा स्त्रियों का नेतृत्व करने वाली मदालसा को भी पकड़कर लॉकअप में भेजा गया, जहाँ उन्हें मारा भी गया।इस प्रकार इस जुलूस में लगभग 200 व्यक्ति घायल हुए थे जिनमे से कुछ की हालत गंभीर थी।
प्रश्न 3) 'जब से कानून भंग का काम शुरू हुआ है तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे मैदान में नहीं की गई थी और यह सभा तो कहना चाहिए कि ओपन लड़ाई थी।' यहाँ पर कौन से और किस के द्वारा लागू किए गए कानून को भंग करने की बात कही गई है ? क्या कानून भंग करना उचित था ? पाठ के सन्दर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर : यहाँ पर अंग्रेज प्रशासन /पुलिस कमिश्नर द्वारा सभा स्थगित करने जैसे लागू  कानून को कौंसिल की तरफ़ से भंग करने की बात कही है।
प्रत्येक देशवासी अंग्रेजों के अत्याचार से मुक्त होने तथा स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ त्यागने के लिए तैयार था किंतु अंग्रेजी हुकूमत ने सभा करने ,झंडा फहराने और जुलूस में शामिल होने को गैरकानूनी घोषित कर दिया था। अंग्रेजी प्रशासन नहीं चाहता था कि लोगो में स्वतंत्रता की भावना जागृत हो। ये कानून वास्तव में भारत वासियों की स्वतंत्रता को कुचलने वाला कानून था| अतः मेरे विचार में इस कानून का उल्लंघन करना उचित था क्योंकि इसके बिना लोगो मे आज़ादी की आग प्रज्वलित न होती।
प्रश्न 4) बहुत से लोग घायल हुए,बहुतों को लॉकअप में रखा गया ,बहुत सी स्त्रियाँ जेल गई ,फिर भी इस दिन को अपूर्व बताया गया है। आपके विचार से यह सब अपूर्व क्यों है ?अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
26 जनवरी 1931 का दिन अपूर्व इसलिए था क्योंकि इस दिन कलकत्तावासियों ने पूरे उत्साह,जोश व उमंग के साथ परतंत्र भारत का दूसरा स्वतंत्रता दिवस पुलिस कमीशनर के नोटिस को खुली चुनौती देते हुए सफलतापूर्वक मनाया था। इस दिन को सफल बनाने के लिए लोगो ने ऐसी तैयारियाँ की थी जैसी आज से पहले कभी नहीं हुई थी।पुलिस द्वरा लाठीचार्ज व गिरफ्तार किए जाने के बाद भी स्त्रियों ने निश्चित समय पर मोनुमेंट की सीढ़ियों पर चढ़कर झंडा फहराया तथा घोषणा-पत्र पढ़ा।


(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए -
(1) आज तो जो कुछ हुआ वह अपूर्व हुआ है। बंगाल के नाम या कलकत्ता के नाम पर कलंक था कि यहाँ काम नहीं हो रहा है। वह आज बहुत अंश में धूल गया।
उत्तर : कलकत्ते के लगभग सभी भागों में झंडे लगाए गए थे। जिस भी रास्तों पर मनुष्यों का आना - जाना था, वहीं जोश ,ख़ुशी और नयापन महसूस होता था।बड़े - बड़े पार्कों और मैदानों को सवेरे से ही पुलिस ने घेर रखा था क्योंकि वही पर सभाएँ और समारोह होना था। स्मारक के नीचे जहाँ शाम को सभा होने वाली थी उस जगह को तो सुबह के छः बजे से ही पुलिस ने बड़ी संख्या में आकर घेर लिया था ,इतना सब कुछ होने के बाबजूद भी कई जगह पर तो सुबह ही लोगों ने झंडे फहरा दिए थे। जब से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कानून तोड़ने का सिलसिला शुरू हुआ था तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे खुले मैदान में कभी नहीं हुई थी और ये सभा तो कह सकते हैं कि सबके लिए ओपन लड़ाई थी क्योंकि पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकाल दिया था कि अमुक -अमुक धारा के अनुसार कोई भी, कही भी, किसी भी तरह की सभा नहीं कर सकते हैं।लोगो की भीड़ इतनी अधिक थी कि पुलिस ने उनको रोकने के लिए लाठियां चलाना शुरू कर दिया। आदमियों के सर फट गए तथा पुलिस कई आदमियों को पकड़ कर ले गई किंतु फिर भी लोगो के साहस और जोश में कोई कमी नहीं आई।
(2) खुला चैलेंज देकर ऐसी सभा पहले नहीं की गई थी।
उत्तर : जब से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कानून तोड़ने का सिलसिला शुरू हुआ था तब से आज तक इतनी बड़ी सभा ऐसे खुले मैदान में कभी नहीं हुई थी और ये सभा तो कह सकते हैं कि सबके लिए ओपन लड़ाई थी। पुलिस कमिश्नर ने नोटिस निकाला था कि अमुक -अमुक धारा के अनुसार कोई भी, कही भी, किसी भी तरह की सभा नहीं कर सकता हैं। अगर किसी ने किसी भी तरह से सभा में भाग लिया तो वे दोषी समझे जाऍगे।इधर परिषद् की ओर से नोटिस निकल गया था कि ठीक चार बजकर चौबीस मिनट पर स्मारक के नीचे झंडा फहराया जाएगा तथा स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा पढ़ी जाएगी। सभी लोगो को उपस्थित रहने के लिए कहा गया था। प्रशासन को इस तरह से खुली चुनौती दे कर कभी पहले इस तरह की कोई सभा नहीं हुई थी।

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