बिहारी | बिहारी के दोहे | पद, शब्दार्थ, व्याख्या, प्रश्न उत्तर || Bihari Ke Dohe || पद || कक्षा 10 || स्पर्श || गद्य || # KnowingHindi


 


कवि परिचय

कवि- बिहारी
जन्म- 1595
मृत्यु- 1663
इनकी एक ही रचना सतसई उपलब्ध है, जिसमें उनके लगभग 700 दोहे संगृहीत हैं|
भाषा शैली-

इनकी भाषा ब्रज भाषा है तथा इन्होने अधिक वर्ण्य सामग्री श्रृंगार से ली है| साथ ही साथ इन्होने लोक-व्यवहार,नीति ज्ञान आदि विषयों पर भी लिखा है|संकलित दोहों मे सभी प्रकार की छटाएँ हैं तथा इस प्रकार कहा जा सकता है कि बिहारी कम से कम शब्दों में अधिक–से–अधिक अर्थ भरने की कला में निपुण हैं |


पद


1) सोहत ओढ़ैं पीतु पटु स्याम ,सलौनैं गात। मनौ नीलमनि -सैल पर आतपु परयौ प्रभात।।
शब्दार्थ
सोहत - अच्छा लगना ओढ़ैं - ओढ़ कर पितु - पीला पटु - कपड़ा गात - शरीर नीलमनि -सैल -- नीलमणि का पर्वत आतपु - धूप प्रभात- सुबह
व्याख्या -: इस दोहे में कवि ने श्री कृष्ण के साँवले शरीर की सुंदरता का वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि श्री कृष्ण के साँवले शरीर पर पीले वस्त्र बहुत अच्छे लग रहे हैं। ऐसा लग रहा है जैसे मानो नीलमणि पर्वत पर प्रातः काल की धूप पड़ रही हो। श्री कृष्ण के साँवले शरीर को नीलमणि पर्वत तथा पीले वस्त्र को सूर्य की धूप के समान कहा गया है।

2) कहलाने एकत बसत अहि मयूर ,मृग बाघ। जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ -दाघ निदाघ।।
शब्दार्थ

अहि - साँप
एकत - इकठ्ठे
बसत -रहते हैं
मृग - हिरण
तपोबन - वह वन जहाँ तपस्वी रहते हैं
दीरघ-दाघ - भयंकर गर्मी
निदाघ – ग्रीष्म

इसमें कवि गर्मी की अधिकता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि विपत्ति यानि गर्मी के ताप से बचने के लिए अत्यंत विपरीत स्वभाव वाले जानवरों ने आपसी शत्रुता को भुलाकर जंगल को तपोवन बना दिया है |
व्याख्या -: इस दोहे में कवि कहते हैं कि भीषण गर्मी से बेहाल जानवर एक ही स्थान पर बैठे हैं। मोर और साँप एक साथ बैठे हैं,हिरण और शेर एक साथ बैठे हैं।जिस प्रकार तपोवन में सारे लोग आपसी ईर्ष्या-द्वेष व लडाई झगड़े को भूल कर एक साथ रहते हैं उसी तरह गर्मी से बेहाल ये जानवर भी आपसी द्वेष को भुला कर एक साथ बैठे हैं।
3) बतरस -लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ। सौंह करैं भौंहनु हँसै ,दैन कहैं नटि जाइ।।
शब्दार्थ

बतरस - बातचीत का आनंद
लाल - श्री कृष्ण
मुरली - बाँसुरी
लुकाइ - छुपाना
सौंह - शपथ
भौंहनु - भौंह से
नटि जाइ - मना कर देना

व्याख्या -: इसमें कवि गोपियों द्वारा श्री कृष्ण की बाँसुरी चुराए जाने का वर्णन करते हैं। कवि कहते हैं कि गोपियों ने श्री कृष्ण से बात करने के लालच में उनकी बाँसुरी को चुरा लिया है। गोपियाँ कसम भी खाती हैं कि उन्होंने बाँसुरी नहीं चुराई है लेकिन बाद में भोंहे घुमाकर कुटिल मुस्कान में हँसने लगती हैं और बाँसुरी देने से मना कर देती हैं।

4) कहत ,नटत ,रीझत ,खीझत ,मिलत ,खिलत ,लजियात। भरे भौन मैं करत हैं नैननु ही सब बात।।
शब्दार्थ
कहत - कहना ,बात करना नटत - इंकार करना रीझत - मोहित होना खीझत - बनावटी गुस्सा करना मिलत - मिलना खिलत - प्रसन्न होना लजियात - शरमाना भौन - भवन नैननु - नेत्रों से
इसमें कवि ने नायक - नायिका की आँखों-आँखों में चलने वाली बातचीत का सुन्दर वर्णन किया है।
व्याख्या -: इस दोहे में कवि कहते हैं कि भरी सभा में नायक और नायिका एक दूसरे से आँखों ही आँखों में लोगों से भरे भवन में इस प्रकार बातचीत करते है कि दूसरे लोगों को पता भी नहीं चलता | नायक आँखों के इशारे द्वारा ही नायिका से कुछ पूछता है जिसका उत्तर नायिका ना में देती है,जिस पर नायक मोहित हो जाता है, ,जिसपर नायिका बनावटी गुस्सा दिखाती है| जब उनकी आँखे फिर से मिलती हैं तो वे दोनों खुश हो जाते हैं और फिर शरमा जाते हैं।कवि कहते हैं कि इस तरह वे दोनों भरे भवन में भी एक दूसरे से बात करते हैं और किसी को ज्ञात भी नहीं होता।

5) बैठि रही अति सघन बन ,पैठि सदन - तन माँह। देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह।।
शब्दार्थ
सघन - घना बन - जंगल पैठि - घुसना सदन-तन --भवन में जेठ - जून का महीना छाँहौं - छाया भी
इसमें कवि जेठ/जून महीने की गर्मी का वर्णन कर रहे हैं।
व्याख्या -: कवि कहते हैं कि जेठ /जून महीने में गर्मी इतनी अधिक हो रही है कि छाया भी इस गरमी से बचने के लिए छाया ढूँढ रही है अर्थात वह गर्मी से बचने के लिए जगह तलाश रही है। वह इस गरमी से बचने के लिए किसी घने जंगल में या किसी घर के अंदर चली गई है ।
6) कागद पर लिखत न बनत ,कहत सँदेसु लजात। कहिहै सबु तेरौ हियौ ,मेरे हिय की बात।।
शब्दार्थ
कागद - कागज़ लिखत न बनत - लिखा नहीं जाता सँदेसु - सन्देश लजात - लज्जा आना कहिहै - कह देगा हिय – ह्रदय
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने नायिका की विरह का वर्णन किया है ,जोकि नायक से दूर है |
व्याख्या - : कवि कहते हैं कि नायिका अपनी विरह की पीड़ा को कागज़ पर नहीं लिख पा रही है और कह कर सन्देश भेजने में उसे लज्जा आ रही है | अंत में वह नायक से कहती है कि जिस तरह मेरा हृदय तुम्हारे लिए व्याकुल है, उसी तरह तुम्हारा हृदय भी मेरे लिए व्याकुल होगा इसलिए तुम मेरे दिल की व्यथा अपने ह्रदय से पूछ लो |वह मेरे हृदय के बारे मे तुम को सबकुछ बता देगा |

7) प्रगट भय द्विजराज - कुल ,सुबस बसे ब्रज आइ। मेरे हरौ कलेस सब ,केसव केसवराइ।।
शब्दार्थ
द्विजराज - 1 ) चन्द्रमा 2 )ब्राह्मण सुबस - अपनी इच्छा से केसव - श्री कृष्ण केसवराइ - बिहारी कवि के पिता
व्याख्या -: कवि कहते हैं कि हे श्री कृष्ण ! आपने चंद्र वंश में जन्म लिया और स्वयं ही ब्रज में आकर बस गए। बिहारी जी के पिता का नाम केशवराय है और श्री कृष्ण का एक नाम केशव है ,इसलिए कवि कहते हैं कि आप मेरे पिता के समान हैं अतः मेरे समस्त कष्टों का नाश कर दीजिए।
इस प्रकार इसमें कवि श्री कृष्ण से उनके कष्ट दूर करने की प्रार्थना करते हैं।

8) जपमाला ,छापैं ,तिलक सरै न एकौ कामु। मन - काँचै नाचै बृथा साँचै राँचै रामु।।
शब्दार्थ
जपमाला - जपने की माला छापैं - छापना सरै - पूरा होना मन काँचै - बिना सच्ची भक्ति वाला नाचै - नाचना बृथा – व्यर्थ में सांचै - सच्ची भक्ति वाला रांचै - प्रसन्न होना
इसमें कवि ने धार्मिक आडम्बरों के स्थान पर सच्चे मन से की जाने वाली ईश्वर भक्ति को महत्त्व दिया है।
व्याख्या -:कवि कहते हैं कि केवल ईश्वर के नाम की माला जपने से ,ईश्वर नाम लिख लेने से तथा तिलक करने से ईश्वर भक्ति नहीं हो जाती। यदि मन में ईश्वर के लिए विश्वास न हो तो उनकी भक्ति में नृत्य करना भी व्यर्थ है। इसके विपरीत जो सच्चे मन से ईश्वर भक्ति करते हैं, ईश्वर उन्ही पर प्रसन्न होते हैं।
कवि के अनुसार मन तो काँच की तरह क्षणभंगुर होता है,जो इधर -उधर की बातों में आसानी से भटक जाता है,अगर हम अपने मन को स्थिर करके ईश्वर की आराधना करें तो ही हम सच्चे भक्त कहलाने के लायक होंगे|


प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1 -: छाया भी कब छाया ढूंढ़ने लगती है ?
उत्तर -: कवि कहते है कि जून के महीने में दोपहर के समय जब सूरज बिल्कुल सिर के ऊपर आ जाता है तब छाया भी छाया की तलाश करने के लिए घने जंगलों व घरों के अंदर चली जाती है अर्थात छाया भी गर्मी से परेशान हो कर छाया की तलाश करती है।
प्रश्न 2 - बिहारी की नायिका यह क्यों कहती है कि 'कहि है सबु तेरौ हियौ ,मेरे हिय की बात '- स्पष्ट कीजिये।
उत्तर -: नायिका परदेश गए हुए अपने नायक को पत्र लिखना चाहती है किंतु अपनी विरह दशा को पत्र में लिखने में असमर्थ पाती है |वह किसी अन्य माध्यम से अपना संदेश भेजने में भी लज्जा का अनुभव करती है| फिर नायिका कहती है कि वह नायक से सच्चा प्रेम करती है और यदि नायक भी उससे सच्चा प्रेम करता है तो नायक का ह्रदय उसे नायिका के ह्रदय की विरह दशा का आभास करा देगा क्योंकि उनके बीच संवाद की स्थिति न होने पर भी दोनों की बात हो जाती थी |
प्रश्न 3 - सच्चे मन में राम बसते हैं - दोहे के संदर्भानुसार स्पष्ट कीजिये।
उत्तर -: कवि का मानना है कि धार्मिक आडंबरों से ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है। न ही माला जपने,माथे पर तिलक लगाने व राम नाम लिखने से ईश्वर की प्राप्ति होती है। केवल सच्चे मन से की गई भक्ति से ही ईश्वर प्रसन्न होते हैं |
प्रश्न 4 - गोपियाँ श्री कृष्ण की बाँसुरी क्यों छुपा लेती है ?
उत्तर -: गोपियों बात करने की लालसा से श्री कृष्ण की बाँसुरी छिपा लेती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर वे बाँसुरी को छुपा देंगी तो कृष्ण अवश्य ही इस बारे में उनसे पूछेंगे और इस प्रकार उन्हें उनसे बात करने का सुअवसर भी मिल जाएगा |
प्रश्न 5 - बिहारी कवि ने सभी की उपस्थिति में भी कैसे बात की जा सकती है ,इसका वर्णन किस प्रकार किया है?अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर -: बिहारी कवि ने अनुसार सभी की उपस्थिति में भी मन की बात आँखों के इशारे से की जा सकती है। नायक व नायिका ऐसे स्थान पर बैठे हैं जहाँ अन्य लोग भी बैठे हैं नायक नायिका से बात करना चाहता है किंतु सब लोगों की उपस्थिति में यह संभव न था |ऐसे में नायक-नायिका आँखों के संकेतों से सारी बात कर लेते हैं|नायक आँख के संकेत से नायिका को कुछ कहता है तथा नायिका आँख के संकेत से ही मना कर देती है| नायिका के मना करने के सरस ढंग पर नायक मोहित हो जाता है तो नायिका बनावटी गुस्सा व्यक्त करती है|थोड़ी देर में उनके नेत्र पुन: आपस में मिलते हैं तो दोनों खुश हो जाते हैं और शरमा जाते हैं | इस प्रकार नायक व नायिका सभी की उपस्थिति में बातचीत भी कर लेते हैं और किसी को पता भी नहीं चलता |

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